Sunday, January 31, 2016

औरतो के बारे में रोचक तथ्य


International Woman Day हर साल 8 मार्च को मनाया जाता है. कई देशों में इस दिन छुट्टी भी की जाती है.

इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी औलंपिक में अमरीका की टीम में पुरूषों से ज्यादा महिलाये हों. 2012 की औलंपिक टीम में 269 महिलाये और 261 पुरूष थे.

अमरीका में पुरूषों से महिलायों की गिणती ज्यादा है.


औरत लिंग का जैविक चिन्ह

औरत लिंग का जैविक चिन्ह ऊपरी चिन्ह है और यह शुर्क ग्रह का भी चिन्ह है.

लगभग 100 में से 2 महिलायों के एक अतिरिक्त स्तन होता है जो कि तीसरा स्तन होता है.

साउदी अरब में यह कानुन है कि अगर कोई पति अपनी पतनी को cofee ना दे तो वह उससे तलाक ले सकती है.

महिलाएँ पुरूषों के मुकाबले अपनी ऑखे दुगनी ज्यादा झपकती है.

'Woman' शब्द की उत्पति wyfman' से हुई है जिसका अर्थ है - 'wife of man'.

संसार से हर जगह औरतो की औसत आयु मर्दो से कही ज्यादा है. महिलाएं पुरुषों के मुकाबले लंबी जिंदगी जीती हैं। इसके पीछे एक बड़ी वजह उनका इम्यून सिस्टम है।

लंबे कद वाली महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर के प्रति अधिक सचेत रहना चाहिए क्योंकि उन्हें इसका खतरा अधिक होता है। हालैंड के कुछ वैज्ञानिकों ने अपने शोध के आधार पर माना है कि लंबे कद वाली महिलाओं का शारीरिक विकास कम उम्र से ही तेजी से होता है जिस वजह से उनके हार्मोन्स में बदलाव भी तेजी से होता है। इससे उन्हें ब्रेस्ट कैंसर की आशंका अधिक रहती है।

हर महिला अपने जीवन काल दौरान लगभग 2 किलो 700 ग्राम lipstick लगा चुकी होती है.

लगभग 27% औरतो की मौत दिल की बिमारी के कारण और 12% की मौत कैंसर से होती है.



सबस ज्यादा बच्चो को जन्म देने की रिकार्ड रूस की एक महिला के नाम हैं. जिसके 69 बच्चे थे. इनमे से 7 तो तिगड़ी थे अर्थात् तीन इकट्ठे पैदा हुए थे और 7 ही जुड़वा और बाकी एक-एक थे.

लगभग अमरीका की सेना में 14% महिलाएँ है जबकि 1950 में यह आकड़ा 2% से कम था.

Newzealand ऐसा पहिला देश है जिसने औरते को वोट का अधिकार सबस पहले 1893 में दिया. इंग्लैंड ने 1932 में दिया था।

अगर एक आदमी सात दिनो के लिए कही बाहर जाता है तो वह पाँच दिन के कपड़े पैक करता है. मगर जब एक औरत सात दिन के टूर पर जाती है तो वह लगभग 21 सूट पैक करती है क्योकि वह यह नही जानती कि हर दिन उसे किया पहनने को दिल करेगा.

शोधकर्ताओं के मुताबिक, महिलाओं को नए जन्मे बच्चे की खुशबू बहुत ज्यादा उत्तेजित करती है। यह उत्तेजना किसी भी ड्रग्स के शिकार व्यक्ति के तड़पने के बराबर होती है।

औरतो को सुंघने की समता जन्म से ही मर्दो से ज्यादा होती है और सारी जिन्दगी ज्यादा ही रहती है.

झूठ के मामले में महिलाएं पुरुषों से काफी पीछे हैं। एक पुरुष दिन भर में 6 बार झूठ बोलता है। वहीं, एक महिला औसतन दिन में दो बार ही झूठ बोल पाती है।

औरतो के दिल की गति की धड़कन मर्दो से ज्यादा होती है.

हर साल लगभग 1 करोड़ 40 लाख किशोर लड़किया गर्भवती होती है और इनमे से 90% विकासशील देशों की होती है.

ब्रिटेन में महिलाओं के पास औसतन 19 जोड़े जूते और सैंडिल होते हैं। इनमें से वह सिर्फ सात जोड़ी काम में लाती हैं। इसके साथ ही अपनी पूरी जिंदगी में महिलाएं 111 हैंडबैग्स खरीदती हैं।

लगभग हर दिन 1,600 औरतें बच्चो को जन्म देने के दौरान मरती है ओर इनमे से 99% विकासशील देशो की होती है.

लड़कियां बड़ी चूजी होती हैं। एक शोध के मुताबिक, वे अपना एक साल सिर्फ यह सोच कर निकाल सकती हैं कि उन्हें कौन-से कपड़े पहनने हैं। वहीं, अपने लुक को लेकर वो दिन में कम से कम 9 बार सोचती हैं।

इस बात से आप भी इत्तेफाक रखेंगे कि महिलाओं के पेट में कोई भी बात नहीं पचती। महिलाएं किसी भी खास बात को 47 घंटे और 15 मिनट तक ही गुप्त रख सकती हैं। इसके बाद ज्वालामुखी फटता है।




अफ्रीकी देश नाइजर शिशु जन्म दर के मामले में सबसे आगे है। यहां की महिलाएं औसतन सात बच्चों को जन्म देती हैं, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है।

एक साल में महिलाएं 30 से 64 बार रोती हैं। वहीं, पुरुष एक साल में सिर्फ 6 से 17 बार रोते हैं।

यह बात सुनने में भले ही मजाक लगे, लेकिन सच है कि पुरुष औसतन 13000 शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, जबकि महिलाएं लगभग 20 हजार शब्द बोलती हैं।

कामकाज में महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा वरीयता दी जाती है, लेकिन असलियत ये है कि महिलाएं एक साथ कई तरह के काम करने में पुरुषों से कहीं ज्यादा सक्षम होती हैं।

श्रीलंका ऐसा एकलौता देश है जिसका पहला प्रधानमंत्री एक महिला थी. श्रीमती भंडारनायके 1960 में श्रीलंका के पहले प्रधानमंत्री बने.

गर्भाशय का सफल ट्रांसप्लांट कराने वाली दुनिया की पहली महिला पहली बार 2013 में प्रेग्नेंट हुई थी।

दुनिया का सबसे पहला नावल 'The tale of Genji' 1000 ईसवी में

सपने



आप एक ही समय पर सपने देख और खराटे मार नही सकते.

अगर कोई इन्सान आप को कहता है कि उसे सपने नही आते ते इसका मतलब वह अपने सपने भूल चुका है.

एक औसतन इन्सान रात में 4 सपने और एक साल में 1,460 सपने देखता है.

आप को कभी भी यह याद नही रहेगा कि आपका सपना कहा से शुरू हुआ था.

आप जागने के बाद अपने आधे सपने और दस मिनट बाद 90% सपने भूल जाते हैं.

अंधे लोगो को भी सपने आते हैं.-
जो लोग जन्म के बाद अन्धे बनते है उन्हें अपने सपनो में तस्वीरे दिखाई देती है. मगर जो जन्म से ही अंन्धे होते है उन्हें कोई तस्वीर नही दिखती और सपनों में चीजो की आवाजे,smells, छूना और भावनाएँ ही आती हैं.

सपनों में हम सिर्फ चेहरे देखते है, जो हम पहले से ही जानते होते हैं-
हमारा दिमाग अपने आप चेहरे नही बनाता. सपने में हमे सिर्फ वही चेहरे दिखते हैं जो हमने अपनी जिन्दगी जा टी.वी पर देखे होते हैं.



हर किसी के सपने रंगदार नही होते-
सारे मनुष्य रंगदार सपने नही देखते हैं. पहले के समय में जब टी.वी. नही होते थे तब लगभग सभी लोग Black and White सपने देखते थे. मगर जब से रंगीन टी.वी. आए हैं तब से 95% लोग रंगीन सपने देखने लगे हैं.

भावनाएँ-
ज्यादातर सपने चिंता और फिक्र वाले होते है. सपनो में Negative emotions,positive से ज्यादा होते हैं.

जानवर भी सपने देखते हैं.-
अध्ययनों के बाद पता चला है कि जानवर भी सोते समय मनुष्यों की तरह ही दिमागी तरंगे छोड़ते है. कभी आप एक कुत्ते को सोते देखे. वह अपने पैर इस तरह से हिला रहा होगा जैसे किसी का पीछा कर रहा हो.

आदमी और औरतों के सपने अलग-अलग होते हैं-
लगभग 70% आदमीयों के सपने अन्य आदमीयों के बारे में ही होते है जब कि औरतो के सपने आदमी और औरतो दोनो के बारे में होते हैं.


फेड्रिक ओगस्ट

फेड्रिक ओगस्ट ने बेनजेन(C6H6) जैसा जटिल रसायनिक फार्मुला तैयार किया वह भी सपने की आभारी है. उन्होंने अपने सपने में कुछ साँप देखे थे जो अपनी पूंछ खा रहे थे.

अमरीका के 16वे राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने अपनी मौत से कुछ समय पहले अपनी पत्नी से कहा था, "मैने अपने सपने में कुछ लोगों को रोते देखा था".

हम सोते समय 90 मिनट में एक सपना जरूर देखते हैं और हमारा सबसे लंम्बा सपना सुबह आता है जो कि 30 से 45 मिनट तक का होता है.

अगर सपने में किसी को गंदा पानी दिखता है तो उसका मतलब यह है कि सपना देखने वाला सेहतमंद नही है.

हमारे प्राचीन वेदों में लिखा है कि यह संसार असल में एक सपना ही है और असलीयत कुछ और ही है.

सपने हमें लक्वाग्रस्त बनाते हैं-
  इस पग को बताने से पहले हम आप को बता देना चाहते है कि हमारी नींद के 4 चरण होते है उन्में से एक चरण है रेपिड आई मुवमेंट जा REM (Rapid eye movement). इस अवस्था के दौरान हमारी आँखो की पुतलियाँ तेजी से हिलती हैं. इस अवस्था के दौरान हम सपने देख रहे होते हैं . सपनों की अवस्था तब आती है जब हम नींद के REM चरण में पहुँच जाते हैं. इस अवस्था के दैरान हम स्लीप पेरैलाइज का अनुभव करते हैं यानी कि इस दौरान हमारा शरीर लगभग लकवाग्रस्त सा हो जाता है. हम जागृत अवस्था में होते हैं परंतु हिलडुल नही पाते. इस अवस्था के दौरान हम सपने देखते है. हमें हमारे आसपास का वातावरण जागृत अवस्था में दिखाई देता है. इस समय हमारा दिमाग काफी सक्रीय हो जाता है . कई लोग इस अवस्था के दौरान अचानक जाग जाते हैं परंतु फिर भी हिल-डुल नही पाते. यह अवस्था 5 मिनट तक चल सकती है जब तक कि दिमाग के वे हिस्से फिर से सक्रीय न हो जाए जो शरीर के हलन-चलन के लिए आवश्यक हैं. कई लोग जिन्होंने खुद को परग्रहवासियों के अधीन हो जाने की बात कही थी, वह वास्तव में इसी अवस्था से गुजरे थे.

डरावने सपने
लगभग 5 से 10 प्रतीशत लोग महीने में एकाध बार भयानक और डरावने सपने देखते है. इस तरह के सपनों में कोई हमारे पीछे भागता है. 3 से 8 साल को बच्चों को इस तरह के सपने अधिक आते हैं.

इलियास होवे ने सिलाई मशीन की खोज की थी. उन्होंने अपने सपनें में खुद को आदिवासियों की कैद में देखा थी जो उन्हें जलाने वाले थे. इस दौरान वे आदिवासी अपने हथियारों को अजीब तरह से सिल रहे थे. परन्तु इससे एलियास को सिलाई मशीन की तकनीक समझ में आ गई.


D.N.A

जैम्स वॉटसन जिन्होंने अपने मित्र फ्रांसिस क्रिक के साथ मिलकर D.N.A की खोज की थी का कहना था कि, "उन्होंने अपने सपने में ढेर सारी स्पायर सीढ़ियॉ देखी थी.

सपने हमें सिखाते हैं-
  सपने जाने अनजाने हमारे बौद्धिक विकास में महत्वपुर्ण भाग निभाते हैं. REM अवस्था के दैरान हमारे दिमाग के वे हिस्से काफी सक्रीय हो जाते है जिनसे हम पढ़ना सीखते हैं, यही वजह है कि बच्चे अधिक समय तक इस अवस्था मे गुजरते हैं. सपनों के दौरान हम कई नई बातें सीखते हैं परन्तु जागने के बाद हमें इसका अहसास नही र

भारतीय रेल




प्रकार रेल मंत्रालय, भारत सरकार का विभागीय उपक्रम
उद्मोग रेलवे तथा लोकोमोटिव
स्थापना १६ अप्रैल, १८५३, १९५१[1] में राष्ट्रीकृत
मुख्यालय नई दिल्ली, भारत
क्षेत्र भारत
प्रमुख व्यक्ति केन्द्रीय रेलवे मंत्री:
सुरेश प्रभाकर प्रभु
नारानभाई जे रथवा
अध्यक्ष, रेलवे बोर्ड:
कल्याण सी जेना
उत्पाद रेल यातायात, माल-यातायात, अन्य सेवाएं
राजस्व ₹ ७२,६५५ करोड़ (२००८) (~18.16B$)[2]
कर्मचारी ~१,२०,००,०००
मातृ कंपनी रेल मंत्रालय (भारत)
प्रभाग 17 रेलवे मण्डल
वेबसाइट भारतीय रेल

यार्ड में खड़ी एक जनशताब्दी रेल।
भारतीय रेल (आईआर) एशिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है तथा एकल प्रबंधनाधीन यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। यह १५० वर्षों से भी अधिक समय तक भारत के परिवहन क्षेत्र का मुख्य संघटक रहा है। यह विश्व का सबसे बड़ा नियोक्ता है, इसके १६ लाख से भी अधिक कर्मचारी हैं। यह न केवल देश की मूल संरचनात्‍मक आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है अपितु बिखरे हुए क्षेत्रों को एक साथ जोड़ने में और देश राष्‍ट्रीय अखंडता का भी संवर्धन करता है। राष्‍ट्रीय आपात स्थिति के दौरान आपदा ग्रस्त क्षेत्रों में राहत सामग्री पहुंचाने में भारतीय रेलवे अग्रणी रहा है।

अर्थव्यस्था में अंतर्देशीय परिवहन का रेल मुख्य माध्यम है। यह ऊर्जा सक्षम परिवहन मोड, जो बड़ी मात्रा में जनशक्ति के आवागमन के लिए बड़ा ही आदर्श एवं उपयुक्त है, बड़ी मात्रा में वस्तुओं को लाने ले जाने तथा लंबी दूरी की यात्रा के लिए अत्यन्त उपयुक्त है। यह देश की जीवन धारा है और इसके सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए इनका महत्वपूर्ण स्थान है। सुस्थापित रेल प्रणाली देश के दूरतम स्‍थानों से लोगों को एक साथ मिलाती है और व्यापार करना, दृश्य दर्शन, तीर्थ और शिक्षा संभव बनाती है। यह जीवन स्तर सुधारती है और इस प्रकार से उद्योग और कृषि का विकासशील त्वरित करने में सहायता करता है।

अनुक्रम
भारत में रेलों की शुरुआत
मुख्य खण्ड
अन्तर्गत उपक्रम
अनुसंधान, डिज़ाइन और मानक संगठन
देश के विकास में
आधुनिकीकरण
मूल संरचना विकास
मुख्य खण्ड
अन्तर्गत उपक्रम
अनुसंधान, डिज़ाइन और मानक संगठन
देश के विकास में
आधुनिकीकरण
मूल संरचना विकास
रेल बजट
पंचवर्षीय योजनान्तर्गत
महत्वपूर्ण रेल एवं उपलब्धियाँ
रेलक्षेत्र
सन्दर्भ
यह भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
भारत में रेलों की शुरुआत
भारत में रेलों की शुरुआत 1853 में अंग्रेजों द्वारा अपनी प्राशासनिक सुविधा के लिये की गयी थी परंतु आज भारत के ज्यादातर हिस्सों में रेलवे का जाल बिछा हुआ है और रेल, परिवहन का सस्ता और मुख्य साधन बन चुकी है। सन् 1853 में बहुत ही मामूली शुरूआत से जब पहली अप ट्रेन ने मुंबई से थाणे तक (34 कि॰मी॰ की दूरी) की दूरी तय की थी, अब भारतीय रेल विशाल नेटवर्क में विकसित हो चुका है। इसके 115,000 कि.मी.मार्ग की लंबाई पर 7,172 स्‍टेशन फैले हुए हैं।[3] उनके पास 7,910 इंजनों का बेड़ा हैं; 42,441 सवारी सेवाधान, 5,822 अन्‍य कोच यान, 2,22,379 वैगन (31 मार्च 2005 की स्थिति के अनुसार)। भारतीय रेल बहुल गेज प्रणाली है; जिसमें चौडी गेज (1.676 मि मी) मीटर गेज (1.000 मि मी); और पतली गेज (0.762 मि मी. और 610 मि. मी) है। उनकी पटरियों की लंबाई क्रमश: 89,771 कि.मी; 15,684 कि॰मी॰ और 3,350 कि॰मी॰ है। जबकि गेजवार मार्ग की लंबाई क्रमश: 47,749 कि.मी; 12,662 कि॰मी॰ और 3,054 कि॰मी॰ है। कुल चालू पटरियों की लंबाई 84,260 कि॰मी॰ है जिसमें से 67,932 कि॰मी॰ चौडी गेज, 13,271 कि॰मी॰ मीटर गेज और 3,057 कि॰मी॰ पतली गेज है। लगभग मार्ग किलो मीटर का 28 प्रतिशत, चालू पटरी 39 प्रतिशत और 40 प्रतिशत कुल पटरियों का विद्युतीकरण किया जा चुका है।

मुख्य खण्ड
भारतीय रेल के दो मुख्‍य खंड हैं - भाड़ा/माल वाहन और सवारी। भाड़ा खंड लगभग दो तिहाई राजस्‍व जुटाता है जबकि शेष सवारी यातायात से आता है। भाड़ा खंड के भीतर थोक यातायात का योगदान लगभग 95 प्रतिशत से अधिक कोयले से आता है। वर्ष 2002-03 से सवारी और भाड़ा ढांचा यौक्तिकीकरण करने की प्रक्रिया में वातानुकूलित प्रथम वर्ग का सापेक्ष सूचकांक को 1400 से घटाकर 1150 कर दिया गया है। एसी-2 टायर का सापेक्ष सूचकांक 720 से 650 कर दिया गया है। एसी प्रथम वर्ग के किराए में लगभग 18 प्रतिशत की कटौती की गई है और एसी-2 टायर का 10 प्रतिशत घटाया गया है। 2005-06 में माल यातायात में वस्‍तुओं की संख्‍या 4000 वस्‍तुओं से कम करके 80 मुख्‍य वस्‍तु समूह में रखा गया है और अधिक 2006-07 में 27 समूहों में रखा गया है। भाड़ा प्रभारित करने के लिए वर्गों की कुल संख्‍या को घटाकर 59 से 17 कर दिया गया है।

अन्तर्गत उपक्रम
भारत में रेल मंत्रालय, रेल परिवहन के विकास और रखरखाव के लिए नोडल प्राधिकरण है। यह विभन्‍न नीतियों के न

अनिल कपूर



अनिल कपूर




जन्म  24 दिसम्बर 1959 (आयु 56 वर्ष)[1]
चेम्बूर मुम्बई, महाराष्ट्र, भारत
व्यवसाय अभिनेता, निर्माता
सक्रिय वर्ष 1984 – वर्तमान
कद 5 फ़ुट 9 इंच (1.75 मी) [2]
जीवनसाथी सुनीता कपूर
(1984 – वर्तमान)
संतान सोनम कपूर
रिया कपूर
हर्षवर्धन कपूर
माता - पिता सुरिन्द्र कपूर (पिता)
निर्मल (माँ)
रिश्तेदार बोनी कपूर (भाई)
संजय कपूर (भाई)
अर्जुन कपूर (भतीजा)
श्री देवी (भाभी)


फिल्मी सफर

अनिल कपूर ने उमेश मेहरा की फिल्म 'हमारे तुम्हारे' (1979) के साथ एक सहायक अभिनेता की भूमिका में अपने बॉलीवुड के सफर की शुरुआत की। 'हम पाँच' (1980) और 'शक्ति' (1982) के रूप में कुछ मामूली भूमिकाओं के बाद उन्हें 1983 में 'वो सात दिन' में अपनी पहली प्रमुख भूमिका मिली जिसमे उन्होंने एक उत्कृष्ट एवं स्वाभाविक प्रदर्शन किया। कपूर ने बाद में टॉलीवुड में अभिनय करने की कोशिश की और तेलुगू फिल्म 'वम्सावृक्षं' और मणिरत्नम की पहली कन्नड़ फिल्म 'पल्लवी अनुपल्लवी' (१९८३) की। इसके बाद उन्होंने यश चोपड़ा की 'मशाल' में एक बेहतरीन प्रदर्शन किया जहां उन्होंने दिलीप कुमार के साथ अभिनय कौशल दिखाया। 'मेरी जंग' (1985) जैसी फिल्म में न्याय के लिए लड़ रहे एक नाराज युवा वकील की भूमिका की जिसने उन्हें एक परिपक्व अभिनेता के रूप में स्थापित कर दिया। इसके अलावा अनिल कपूर ने 'कर्मा', 'मिस्टर इंडिया', 'तेज़ाब', 'राम लखन' जैसी फिल्में कीं जिन्होंने उन्हें स्टारडम की ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया।

व्यक्तिगत जीवन

अनिल कपूर जाने माने फिल्म निर्माता सुरेन्द्र कपूर के बेटे हैं। उनका जन्म तिलक नगर मुंबई में हुआ। उनके बड़े भाई बोनी कपूर एक प्रसिद्द निर्माता हैं और उनके छोटे भाई संजय कपूर भी एक अभिनेता हैं। 1984 में उन्होंने सुनीता कपूर से शादी की और उनके तीन बच्चे हैं जिनमे सोनम कपूर भी एक अभिनेत्री है।

लाल किला




देश साँचा:INDIA
प्रकार सांस्कृतिक
मानदंड ii, iii, iv
सन्दर्भ 231
युनेस्को क्षेत्र एशिया-पैसिफिक
शिलालेखित इतिहास
शिलालेख 2007 (31वां सत्र)
यह लेख दिल्ली का लाल किला के बारे में है। आगरा का किला के लिए, लाल किला (बहुविकल्पी) देखें।

दिल्ली के किले को लाल - किला भी कहते हैं, क्योंकि यह लाल रंग का है। यह भारत की राजधानी नई दिल्ली से लगी पुरानी दिल्ली शहर में स्थित है। यह युनेस्को विश्व धरोहर स्थल में चयनित है।[1]


इतिहास


लाल किले का मुख्य-द्वार, जिसे लाहौर द्वार भी कहते हैं। इसी किले पर भारत का राष्ट्रीय ध्वज स्वतंत्रता के क्षण से शान से फहराता है।
लाल किला एवं शाहजहाँनाबाद का शहर, मुगल बादशाह शाहजहाँ द्वारा ई स 1639 में बनवाया गया था। लाल किले का अभिन्यास फिर से किया गया था, जिससे इसे सलीमगढ़ किले के संग एकीकृत किया जा सके। यह किला एवं महल शाहजहाँनाबाद की मध्यकालीन नगरी का महत्वपूर्ण केन्द्र-बिन्दु रहा है। लालकिले की योजना, व्यवस्था एवं सौन्दर्य मुगल सृजनात्मकता का शिरोबिन्दु है, जो कि शाहजहाँ के काल में अपने चरम उत्कर्ष पर पहुँची। इस किले के निर्माण के बाद कई विकास कार्य स्वयं शाहजहाँ द्वारा किए गए। विकास के कई बड़े पहलू औरंगजे़ब एवं अंतिम मुगल शासकों द्वारा किये गये। सम्पूर्ण विन्यास में कई मूलभूत बदलाव ब्रिटिश काल में 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद किये गये थे। ब्रिटिश काल में यह किला मुख्यतः छावनी रूप में प्रयोग किया गया था। बल्कि स्वतंत्रता के बाद भी इसके कई महत्वपूर्ण भाग सेना के नियंत्रण में 2003 तक रहे।

लाल किला मुगल बादशाह शाहजहाँ की नई राजधानी, शाहजहाँनाबाद का महल था। यह दिल्ली शहर की सातवीं मुस्लिम नगरी थी। उसने अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली बदला, अपने शासन की प्रतिष्ठा बढ़ाने हेतु, साथ ही अपनी नये-नये निर्माण कराने की महत्वकाँक्षा को नए मौके देने हेतु भी। इसमें उसकी मुख्य रुचि भी थी।

यह किला भी ताजमहल की भांति ही यमुना नदी के किनारे पर स्थित है। वही नदी का जल इस किले को घेरकर खाई को भरती थी। इसके पूर्वोत्तरी ओर की दीवार एक पुराने किले से लगी थी, जिसे सलीमगढ़ का किला भी कहते हैं। सलीमगढ़ का किला इस्लाम शाह सूरी ने 1546 में बनवाया था। लालकिले का निर्माण 1638 में आरम्भ होकर 1648 में पूर्ण हुआ। पर कुछ मतों के अनुसार इसे लालकोट का एक पुरातन किला एवं नगरी बताते हैं, जिसे शाहजहाँ ने कब्जा़ करके यह किला बनवाया था। लालकोट हिन्दु राजा पृथ्वीराज चौहान की बारहवीं सदी के अन्तिम दौर में राजधानी थी।

11 मार्च 1783 को, सिखों ने लालकिले में प्रवेश कर दीवान-ए-आम पर कब्जा़ कर लिया। नगर को मुगल वजी़रों ने अपने सिख साथियों का समर्पण कर दिया। यह कार्य करोर सिंहिया मिस्ल के सरदार बघेल सिंह धालीवाल के कमान में हुआ।

नाप जोख

लालकिला सलीमगढ़ के पूर्वी छोर पर स्थित है। इसको अपना नाम लाल बलुआ पत्थर की प्राचीर एवं दीवार के कारण मिला है। यही इसकी चार दीवारी बनाती है। यह दीवार 1.5 मील (2.5 किमी) लम्बी है और नदी के किनारे से इसकी ऊँचाई 60 फीट (16मी), तथा 110 फीट (35 मी) ऊँची शहर की ओर से है। इसके नाप जोख करने पर ज्ञात हुआ है, कि इसकी योजना एक 82 मी की वर्गाकार ग्रिड (चौखाने) का प्रयोग कर बनाई गई है।

लाल किले की योजना पूर्ण रूप से की गई थी और इसके बाद के बदलावों ने भी इसकी योजना के मूलरूप में कोई बदलाव नहीं होने दिया है। 18वीं सदी में कुछ लुटेरों एवं आक्रमणकारियों द्वारा इसके कई भागों को क्षति पहुँचाई गई थी। 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद, किले को ब्रिटिश सेना के मुख्यालय के रूप में प्रयोग किया जाने लगा था। इस सेना ने इसके करीब अस्सी प्रतिशत मण्डपों तथा उद्यानों को नष्ट कर दिया। .[2] इन नष्ट हुए बागों एवं बचे भागों को पुनर्स्थापित करने की योजना सन 1903 में उमैद दानिश द्वारा चलाई गई।

इसकी वास्तुकला


प्रांगण की इमारतों का दृश्य
लाल किले में उच्चस्तर की कला एवं विभूषक कार्य दृश्य है। यहाँ की कलाकृतियाँ फारसी, यूरोपीय एवं भारतीय कला का संश्लेषण है, जिसका परिणाम विशिष्ट एवं अनुपम शाहजहानी शैली था। यह शैली रंग, अभिव्यंजना एवं रूप में उत्कृष्ट है। लालकिला दिल्ली की एक महत्वपूर्ण इमारत समूह है, जो भारतीय इतिहास एवं उसकी कलाओं को अपने में समेटे हुए है। इसका महत्व समय की सीमाओं से बढ़कर है। यह वास्तुकला सम्बंधी प्रतिभा एवं शक्ति का प्रतीक है। सन 1913में इसे राष्ट्रीय महत्व के स्मारक घोषित होने से पूर्वैसकी उत्तरकालीनता को संरक्षित एवं परिरक्षित करने हेतु प्रयास हुए थे।

इसकी दीवारें, काफी सुचिक्कनता से तराशी गईं हैं। ये दीवारें दो मुख्य द्वारों पर खुली हैं ― दिल्ली गेट एवं लाहौर गेट। लाहौर गेट

भारत में महिलाएँ


भारत में महिलाएँ
भारत में महिलाओं की स्थिति ने पिछली कुछ सदियों में कई बड़े बदलावों का सामना किया है।[4][5] प्राचीन काल[6] में पुरुषों के साथ बराबरी की स्थिति से लेकर मध्ययुगीन काल[7] के निम्न स्तरीय जीवन और साथ ही कई सुधारकों द्वारा समान अधिकारों को बढ़ावा दिए जाने तक, भारत में महिलाओं का इतिहास काफी गतिशील रहा है। आधुनिक भारत में महिलाएं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोक सभा अध्यक्ष, प्रतिपक्ष की नेता आदि जैसे शीर्ष पदों पर आसीन हुई हैं।

इतिहास

विशेष रूप से महिलाओं की भूमिका की चर्चा करने वाले साहित्य के स्रोत बहुत ही कम हैं ; 1730 ई. के आसपास तंजावुर के एक अधिकारी त्र्यम्बकयज्वन का स्त्रीधर्मपद्धति इसका एक महत्वपूर्ण अपवाद है। इस पुस्तक में प्राचीन काल के अपस्तंब सूत्र (चौथी शताब्दी ईपू) के काल के नारी सुलभ आचरण संबंधी नियमों को संकलित किया गया है।[8] इसका मुखड़ा छंद इस प्रकार है:

मुख्यो धर्मः स्मृतिषु विहितो भार्तृशुश्रुषानम हि :
स्त्री का मुख्य कर्तव्य उसके पति की सेवा से जुडा हुआ है।
जहाँ सुश्रूषा शब्द (अर्थात, “सुनने की चाह”) में ईश्वर के प्रति भक्त की प्रार्थना से लेकर एक दास की निष्ठापूर्ण सेवा तक कई तरह के अर्थ समाहित हैं।[9]

प्राचीन भारत
विद्वानों का मानना है कि प्राचीन भारत में महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ बराबरी का दर्जा हासिल था।[10] हालांकि कुछ अन्य विद्वानों का नज़रिया इसके विपरीत है।[11] पतंजलि और कात्यायन जैसे प्राचीन भारतीय व्याकरणविदों का कहना है कि प्रारम्भिक वैदिक काल[12][13] में महिलाओं को शिक्षा दी जाती थी। ऋग्वेदिक ऋचाएं यह बताती हैं कि महिलाओं की शादी एक परिपक्व उम्र में होती थी और संभवतः उन्हें अपना पति चुनने की भी आजादी थी।[14] ऋग्वेद और उपनिषद जैसे ग्रंथ कई महिला साध्वियों और संतों के बारे में बताते हैं जिनमें गार्गी और मैत्रेयी के नाम उल्लेखनीय हैं।[15]

प्राचीन भारत के कुछ साम्राज्यों में नगरवधु (“नगर की दुल्हन”) जैसी परंपराएं मौजूद थीं। महिलाओं में नगरवधु के प्रतिष्ठित सम्मान के लिये प्रतियोगिता होती थी। आम्रपाली नगरवधु का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण रही है।

अध्ययनों के अनुसार प्रारंभिक वैदिक काल में महिलाओं को बराबरी का दर्जा और अधिकार मिलता था।[16] हालांकि बाद में (लगभग 500 ईसा पूर्व में) स्मृतियों (विशेषकर मनुस्मृति) के साथ महिलाओं की स्थिति में गिरावट आनी शुरु हो गयी और बाबर एवं मुगल साम्राज्य के इस्लामी आक्रमण के साथ और इसके बाद ईसाइयत ने महिलाओं की आजादी और अधिकारों को सीमित कर दिया.[7]

हालांकि जैन धर्म जैसे सुधारवादी आंदोलनों में महिलाओं को धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल होने की अनुमति दी गयी है, भारत में महिलाओं को कमोबेश दासता और बंदिशों का ही सामना करना पडा है।[16] माना जाता है कि बाल विवाह की प्रथा छठी शताब्दी के आसपास शुरु हुई थी।[17]

मध्ययुगीन काल
चित्र:Pastimes15.jpg
देवी राधारानी के चरणों में कृष्ण
समाज में भारतीय महिलाओं की स्थिति में मध्ययुगीन काल के दौरान और अधिक गिरावट आयी[10][7] जब भारत के कुछ समुदायों में सती प्रथा, बाल विवाह और विधवा पुनर्विवाह पर रोक, सामाजिक जिंदगी का एक हिस्सा बन गयी थी। भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों की जीत ने परदा प्रथा को भारतीय समाज में ला दिया. राजस्थान के राजपूतों में जौहर की प्रथा थी। भारत के कुछ हिस्सों में देवदासियां या मंदिर की महिलाओं को यौन शोषण का शिकार होना पड़ा था। बहुविवाह की प्रथा हिन्दू क्षत्रिय शासकों में व्यापक रूप से प्रचलित थी।[17] कई मुस्लिम परिवारों में महिलाओं को जनाना क्षेत्रों तक ही सीमित रखा गया था।

इन परिस्थितियों के बावजूद भी कुछ महिलाओं ने राजनीति, साहित्य, शिक्षा और धर्म के क्षेत्रों में सफलता हासिल की.[7] रज़िया सुल्तान दिल्ली पर शासन करने वाली एकमात्र महिला सम्राज्ञी बनीं. गोंड की महारानी दुर्गावती ने 1564 में मुगल सम्राट अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था। चांद बीबी ने 1590 के दशक में अकबर की शक्तिशाली मुगल सेना के खिलाफ़ अहमदनगर की रक्षा की. जहांगीर की पत्नी नूरजहाँ ने राजशाही शक्ति का प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल किया और मुगल राजगद्दी के पीछे वास्तविक शक्ति के रूप में पहचान हासिल की. मुगल राजकुमारी जहाँआरा और जेबुन्निसा सुप्रसिद्ध कवियित्रियाँ थीं और उन्होंने सत्तारूढ़ प्रशासन को भी प्रभावित किया। शिवाजी की माँ जीजाबाई को एक योद्धा और एक प्रशासक के रूप में उनकी क्षमता के कारण क्वीन रीजेंट के रूप में पदस्थापित किया गया था। दक्षिण भारत में कई महिलाओं ने गाँवों, शहरों और जिलों पर शासन किया और सामाजिक एवं धार्मिक संस्थानों की शुरुआत की.[17]

भक्ति आंद

Saturday, January 30, 2016

कपिल शर्मा


राष्ट्रीयता भारतीय
व्यवसाय हास्य अभिनेता, कलाकार, उत्पादक तथा गायक।
सक्रिय वर्ष 2001 से अब तक
जालपृष्ठ
(वेबसाइट)

kapilsharma.org
कपिल शर्मा एक भारतीय हास्य अभिनेता हैं ।फरवरी 2013 में, कपिल शर्मा फोर्ब्स इंडिया पत्रिकाओं में शीर्ष 100 हस्तियों के बीच में चुने गए थे और वह उस सूची में 96 वें स्थान पर थे।[1][2] अनिल कपूर ने कपिल शर्मा को अपनी फिल्म मे एक भूमिका भी दी थी। वे जल्द ही अनीस बज़मी की चलचित्र(फ़िल्म) " इट्स माय लाइफ " , अब्बास मस्तान की किस किसको प्यार करूँ व करन जौहर की फ़िल्म में भी नज़र आ सकते हैं। वह एक बहुमुखी गायक भी माने जाते हैं। वह उनके चुटकुले कृत्रिम सामाजिक निर्माणों को ही निशाना बनाते हैं।[3] कॉमेडी नाइट्स विद कपिल एक भारतीय हास्य शो है, जो कलर्स टीवी चैनेल पर प्रसारित किया जाता है। इस शो के मेज़बान हास्य अभिनेता कपिल शर्मा हैं। यह शो एक अंग्रेज़ी चैनेल "कुमार्स एट न° 42" के समान बनाया गया है।[4]

पहले का जीवन

कपिल शर्मा का जन्म अमृतसर , पंजाब, भारत में हुआ था। इनके पिता पुलिस डिपार्टमेंट में हेड कांस्टेबल थे और माँ जनक रानी एक गृहणी है।[5] कपिल ने एक स्थानीय (लोकल) पीसीओ से काम करना शुरू किया। इन्होंने अपनी पढाई हिन्दू कॉलेज ,अमृतसर से की है।[6]

करियर

कपिल ने एमएच वन पर हसदे हसांदे रहो कॉमेडी शो में काम किया इसके बाद इन्हें द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज में अपना पहला ब्रेक मिला। ये उन नौ रियलिटी टीवी शो में से एक है जिनको ये जीत चुके हैं।[6]2007 में ये इस शो के विजेता बने जिसमे इन्होंने 10 लाख की पुरस्कार राशि जीती।[7] इसके बाद इन्होंने सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविज़न पर कॉमेडी सर्कस में भाग लिया।[8] कपिल ने इसके सारे छः सीजन जीते।[9] ये डांस रियलिटी शो झलक दिख लाजा सीजन 6 होस्ट भी कर चुके हैं।[10]और इन्होंने कॉमेडी शो छोटे मियां भी होस्ट किया।[11][12]शर्मा ने उस्तादों के उस्ताद नामक शो में भी हिस्सा लिया।

2013 में शर्मा ने अपने प्रोडक्शन बैनर के9 प्रोडक्शन के अंतर्गत अपना शो कॉमेडी नाइट्स विद कपिल लांच किया जो एक बहुत बड़ा हिट साबित हुआ।[13]कॉमेडी नाइट्स विद कपिल भारत का सबसे प्रसिद्ध कॉमेडी शो है।[14]

सीएनएन-आईबीएन इंडियन ऑफ़ द इयर अवार्ड्स में शर्मा को एंटरटेनर ऑफ़ द इयर अवार्ड 2013 से अमोल पालेकर द्वारा सम्मानित किया गया।[15]

लोक सभा चुनाव 2014 में इन्हें दिल्ली चुनाव आयोग के द्वारा दिल्ली का ब्रांड अम्बेसेडर बनाया गया।[16]

शर्मा ने 60वे फ़िल्म फेयर अवार्ड को करन जौहर के साथ को-होस्ट के रूप में होस्ट किया। [17] सेलिब्रिटी क्रिकेट लीग 2014के चौथे सीजन में ये एक प्रेसेंटर थे।[18]ये बैंक चोर नामक यशराज फिल्म्स की फ़िल्म से अपना फिल्मिंग डेब्यू करने वाले थे लेकिन बाद में इन्होंने ये फ़िल्म छोड़ दी।[19]17 अगस्त को कौन बनेगा करोड़पति के 8वे सीजन के पहले एपिसोड में इन्हें अतिथि के रूप में बुलाया गया।[20]ये अपना फ़िल्म डेब्यू लीड के तौर पर अब्बास-मस्तान द्वारा निर्देशित फ़िल्म किस किसको प्यार करूँ से करेंगे , जिसमें इनके अपोजिट अनेक हेरोइसन्स हैं।[21]

व्यंग्य शैली
इनकी व्यंग्य शैली हाज़िर जवाब और आशु-विनोद की है, यानि जो अवस्था हो उसी स्थान पर उसी संदर्भ में कोई मज़ाक करना । इनके विनोद में अश्लील शब्दों का प्रयोग कम होता है । कुछ चीज़े जो इनके व्यंग्य में बारंबार आई हैं -

निर्जीव वस्तुओं का आपसी संबंध निकालना - जैसे तबले, गिटार इत्यादि के छोटे आकार से उनको बेबी कहना; उम्र के साथ हारमोनियम का बड़ा होना ।
दर्ज़े से एकदम अलग बातें - किसी मध्यम सुन्दर को जेनिफ़र लोपेज कहना, या सलमान खान जैसे कालाकारों को "वो लड़का, क्या नाम है उसका.." ।
बाप को मतलबी कहना - कभी पथरी के लिए डॉक्टर बनाना तो कभी वकील ।
साथी कलाकारों के योगदान को कम कहना - कईयों को "मूड में आओ" जैसे शब्द कहना ।
गाने का माहौल श्स्तरीय बनाकर चालू गाने गाना । कई बार - तुनक तुन तुन .., क्या अदा क्या जलवे तेरे पारो .. आदि ।
जज की ख्याति को उलटकर पेश करना - अर्चना को मर्द और शेखर जी को गायक ।
निजी जीवन संपादित करें

शर्मा मुम्बई में रहते हैं । इनकी अभी शादी नहीं हुई है।[22]

ये एक पशु प्रेमी हैं और ये जीवों के साथ मानवीय व्यवहार का समर्थन करते हैं। इन्होंने एक सेवानिवृत्त और छोड़े गए कुत्ते ज़ंजीर को गोद लिया है।[23]

फिल्मोग्राफी

टेलीविज़न
2007 द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज 3 (स्वयं)
2011-12 स्टार या रॉकस्टार (स्वयं)
2010-13 कॉमेडी सर्कस (स्वयं)
2013 झलक दिख ला जा 6 (होस्ट)
2013–वर्तमान कॉमेडी नाइट्स विद कपिल (स्वयं)
2014 कौन बनेगा करोड़पति 8 (अतिथि)
फ़िल्म
2015 किस किसको प्यार करूँ

सलमान ख़ान


जन्म अब्दुल रशीद सलीम सलमान खान
27 दिसम्बर 1965 (आयु 50 वर्ष)
इन्दौर, मध्य प्रदेश, भारत
रहवास बांद्रा, मुम्बई
अन्य नाम सल्लू
व्यवसाय अभिनेता
सक्रिय वर्ष १९८८ - वर्तमान
अब्दुल रशीद सलीम सलमान खान (उर्दू: سلمان خان उच्चारण : səlmɑːn xɑːn, जन्म : २७ दिसम्बर १९६५) एक भारतीय फ़िल्म अभिनेता हैं, जो बॉलीवुड की फिल्मों में दिखाई देते हैं। इन्होंने सन १९८८ में अभिनय की दुनिया में अपनी पहली फिल्म बीवी हो तो ऐसी से शुरूआत की। सलमान को अपनी पहली बड़ी व्यावसायिक सफलता १९८९ में रिलीज़ हुई मैंने प्यार किया से मिली, जिसके लिए इन्हें फिल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ नवीन पुरूष अभिनेता पुरस्कार भी दिया गया। वे बॉलीवुड की कुछ सफल फिल्मों में स्टार कलाकार की भूमिका करते रहे, जैसे साजन (१९९१), हम आपके हैं कौन (१९९४) व बीवी नं. १ (१९९९) और ये ऐसी फिल्में थीं जिन्होंने उनके करियर में पांच अलग सालों में सबसे अधिक कमाई की।

१९९९ में खान ने १९९८ में कुछ कुछ होता है में उनकी अतिथि-भूमिका के लिए फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार जीता और तबसे इन्होंने कई आलोचनात्मक और व्यावसायिक फिल्मों में स्टार के रूप में सफलता प्राप्त की हैं, जिनमें हम दिल दे चुके सनम (१९९९), तेरे नाम(२००३), नो एन्ट्री (२००५) और पार्टनर (२००७) शामिल हैं। इस तरह खान ने खुद को हिंदी सिनेमा[1][2] के प्रमुख अभिनेताओं में सबसे महान अभिनेता की छवि बनाई। बाद में बनी फ़िल्में, वांटेड (२००९), दबंग (२०१०), रेडी (२०११) और बॉडीगार्ड (२०११) उनकी हिन्दी सिने जगत में सर्वाधिक कमाई वाली फ़िल्में रही। किक (२०१४ फिल्म) सलमान की पहली फिल्म है जो 200 करोड़ के क्लब में शामिल हुई है। किक सलमान की सातवीं फिल्म है जो 100 करोड़ से ज्यादा का बिजनेस कर चुकी है। इससे पहले 6 फिल्में 100 करोड़ क्लब में शामिल हो चुकी है। एक था टाइगर - 198 करोड़, दबंग-2 - 158 करोड़, बॉडीगार्ड - 142 करोड़, दबंग - 145 करोड़, Ready (2011 film) - 120 करोड़, जय हो (फ़िल्म) - 111 करोड़ है।[3]
शुरूआती जीवन

खान कथानककार सलीम ख़ान और उनकी पहली पत्नी (प्रथम नाम सुशीला चरक) सलमा के ज्येष्ठ पुत्र है। उनके दादा अफगानिस्तान से आकार भारत में मध्य प्रदेश में बस गए थे। उनकी माँ मराठी हिंदू है।[4] खान ने एक दफ़ा खुद भी कहा है की वे आधे हिंदू व आधे मुस्लिम है।[5] उसकी सौतेली माँ हेलेन, एक पूर्व बॉलीवुड अभिनेत्री है जिन्होंने उनके साथ कुछ फ़िल्मों में साथ काम किया था। उनके दो भाई अरबाज़ ख़ान और शोहेल ख़ान है व बहनें अलवीरा और अर्पिता है। अलवीरा की शादी अभिनेता/निर्देशक अतुल अग्निहोत्री से हो चुकी है। खान ने अपने भाइयों अरबाज़ व शोहेल की ही तरह बांद्रा स्थित सेंट स्टेनिस्लॉस हाई स्कूल के माध्यम से अपनी स्कूली शिक्षा समाप्त की। इससे पहले, उन्होंने ग्वालियर स्थित सिंधिया स्कूल में अपने छोटे भाई अरबाज़ से साथ कुछ वर्ष पढ़ाई की।[6][7]

करियर

१९८० में संपादित करें
सलमान खान ने अपने अभिनय की शुरुआत १९८८ में फिल्म बीवी हो तो ऐसी से की जहां उन्होंने सहायक कलाकार की भूमिका निभाई है। बॉलीवुड फिल्म में उनकी पहली प्रमुख भूमिका सूरज आर. बड़जात्या की रोमांस फिल्म मैनें प्यार किया (1989) में थी। यह फिल्म भारत की सर्वाधिक कमाई वाली फिल्मों से एक फिल्म बन गई।[8] इस फिल्म को के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर का सर्वश्रेष्ठ नए अभिनेता का पुरस्कार मिला व फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरस्कार के लिए नामांकन भी प्राप्त हुआ।

१९९० में संपादित करें
१९९० में खान की केवल एक फ़िल्म रिलीज़ की गई जिसका नाम था बागी: अ रिबेल फॉर लव। इसमें दक्षिण भारत की अभिनेत्री नग़मा मुख्य भूमिका में थी। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल रही थी और[9]इसके बाद वर्ष १९९१ इनके लिए सफल वर्ष साबित हुआ जब इन्होंने लगातार तीन सफल हिट फिल्मों में मुख्य भूमिका निभाई जिनमे ' शामिल है।[10]प्रारंभ में ही बॉक्स ऑफिस पर इन फिल्मों की जबरदस्त सफलता के बावजूद १९९२-१९९३ में रिलीज हुई इनकी तमाम फिल्में असफल रही।[10]

सूरज बड़जात्या के निर्देशन में दूसरी बार सहयोग करने से रोमांस फिल्म हम आपके हैं कौन में सह कलाकार माधुरी दीक्षित के साथ खान ने १९९४ में अपनी पहली सफलता का इतिहास पुन: दोहराया। उस साल की यह सबसे बड़ी हिट फिल्म थी और बॉलीवुड में सबसे व्यावसायिक सफलता के बावजूद इस फिल्म को दूर दूर से प्रशंसा मिलती रही और खान को भी उनके प्रदर्शन की तारीफ मिली जिसके चलते उन्हें दूसरी बार फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरस्कार के लिए नामांकन मिला। उस वर्ष खान की भूमिका वाली तीन और फिल्में रिलीज हुई लेकिन किसी ने भी इतनी सफलता नहीं दिलाई जितनी कि पहली वाली फिलम ने दिलाई थी। हालांकि सह कलाकार आमिर ख़ान के साथ इनकी फिल्म अंदाज अपना अपनाके रिलीज होने के बाद से ही इनके प्रदर्शन के लिए इन्हें प्रशंसा मिल गई थी। १९९५ में इन्होंने राकेश रोशन की ब्लॉकबस्टर फिल्म करण अर्जुन से अपनी सफलता को मजबूत किया जिसमें शाहरुख़ ख़ान[10] इनके सह कलाकार थे। यह फिल्म वर्ष की दूसरी सबसे बड़ी हिट फिल्म और इसमें करन की भूमिका ने उसके नाम को एक बार फिर फिल्मफेयर के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए नामित कर दिया गया जिसमें करन अर्जुन के सह कलाकार शाहरूख खान को यह पुरस्कार दे दिया गया था।

१९९६ के बाद दो सफल फिल्में दी हैं। इनमें से पहली संजय लीला भंसाली की दिशात्मक शुरूआतख़ामोशी: द म्यूज़िकल, थी जिसमें सह कलाकार के रूप में मनीषा कोइराला, नाना पाटेकर और सीमा बिस्वास थीं। हालांकि यह बॉक्स ऑफिस पर असफल रही फिर भी समीक्षकों द्वारा सराही गई थी। इनकी अगली सफलता सनी देओल और करिश्मा कपूर के साथ राज कंवर की एक्शन हिट फिल्म जीत से रही। १९९७ में इनकी दो फिल्में जुड़वां और औजार रिलीज़ हुई। पहली वाली फिल्म डेविड धवन के निर्देशन वाली एक हास्य फिल्म थी जिसमें जन्म के समय बिछुड़ जाने के कारण दोहरी भूमिका निभाई थी।

खान ने १९९८ में पांच अलग अलग फिल्मों में काम किया जिसमें उनकी पहली रिलीज प्यार किया तो डरना क्या वर्ष की सबे बड़ी सफल फिल्म साबित हुई इसमें इनकी सह कलाकार काजोल थीं। इसके बाद साधारण सी सफलता दिलाने वाली इनकी फिल्म जब प्यार किसी से होता है[10] आई। खान ने उस युवा पुरूष की भूमिका निभाई थी, जिसे ऐसे बच्चे को संरक्षण में रखना है, जो उसका बेटा होने का दावा करता है। इस फिल्म में खान का प्रदर्शन उनके लिए कई सकारात्मक सूचना एवं उनके आलाचकों से इनके पक्ष में खबरें लेकर आया। वे करन जौहर के निर्देशन वाली पहली फिल्म कुछ कुछ होता है के ही चक्कर काटते रहे। शाहरूख खान और काजोल के साथ सह कलाकार के रूप में इन्होंने केवल अमन की भूमिका करने वाले केमियो तक ही बढ़ पाए। लेकिन, यह उसके लिए फायदेमंद सिद्ध हुई क्योंकि उनके प्रदर्शन ने उन्हें दूसरी ब



अक्षय कुमार



जन्म नाम राजीव हरी ओम भाटिया
जन्म सितम्बर 9, 1967 (आयु 48 वर्ष)
अमृतसर, भारत
व्यवसाय फिल्म अभिनेता
कार्यकाल १९९१ – वर्तमान
जीवनसाथी ट्विंकल खन्ना (२००१ – वर्तमान)
पुरस्कार और सम्मान
फिल्मफेयर पुरस्कार
सर्वश्रेष्ठ खलनायक
२००२ अज़नबी
सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता
२००५ गरम मसाला
अक्षय कुमार (पंजाबी: ਅਕਸ਼ੈ ਕੁਮਾਰ, जन्म: राजीव हरी ओम भाटिया, ९ सितम्बर, १९६७) एक भारतीय बॉलीवुड फ़िल्म अभिनेता हैं। वे 100 से अधिक हिन्दी फिल्मों में काम कर चुके हैं।

90 के दशक में,[1] हिट एक्शन फिल्मों जैसे खिलाड़ी (१९९२), मोहरा (१९९४) और सबसे बड़ा खिलाड़ी (१९९५) में अभिनय करने के कारण, कुमार को बॉलीवुड का एक्शन हीरो की संज्ञा दी जाती थी और विशेषतः वे "खिलाड़ी श्रृंखला" के लिए जाने जाते थे। फिर भी, वह रोमांटिक फिल्मों जैसे ये दिल्लगी (१९९४) और धड़कन (२०००) में अपने अभिनय के लिए सम्मानित किए गए और साथ ही साथ ड्रामेटिक फिल्मों जैसे एक रिश्ता (२००१) में अपनी अभिनय क्षमता को दिखाया। २००२ में वे अपना पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ खलनायक के रूप में फ़िल्म अजनबी (2001) में अपने अभिनय के लिए। अपनी एक सी छवि को बदलने के इच्छुक अक्षय कुमार ने ज्यादातर कोमेडी फिल्में की।[1] फ़िल्म हेरा फेरी (2002), मुझसे शादी करोगी (2004), गरम मसाला (2005) और जान-ए-मन (२००६) में हास्य अभिनय के लिए फ़िल्म समीक्षकों द्वारा उनकी प्रशंसा की गई। 2007 में वे सफलता की उचाईयों को छुने लगे, जब उनके द्वारा अभिनीत चार लगातार कामर्सियल फिल्में हिट हुई।इस तरह से, वे अपने आपको हिन्दी फ़िल्म उद्योग में एक प्रमुख अभिनेता के रूप में स्थापित किया।[2]

प्रारंभिक जीवन

राजीव हरी ओम भाटिया का जन्म अमृतसर के एक मध्यम वर्गीय पंजाबी परिवार में हुआ।[3] उसके पिता एक सरकारी कर्मचारी थे। बहुत ही छोटी उम्र से ही, वे एक कलाकार के रूप में जाने गए, विशेषतः एक नर्तक के रूप में। मुंबई आने से पहले, कुमार दिल्ली के चाँदनी चौक में एक पड़ोसी के घर पले-बढ़े।[4] मुंबई में, वे कोलीवाड़ा में रहते थे जो एक पंजाबी बहुल क्षेत्र था।[4] वे डोन बोस्को विद्यालय में पढ़ाई किए और फिर खालसा कॉलेज में, जहाँ उन्होंने खेल में अपनी रुचि दिखाई।[4]

वे मार्शल आर्ट्स (सामरिक कला) की शिक्षा बेंगकोक में प्राप्त किया और वहां एक रसोइया की नौकरी भी करते थे। वे फिर मुंबई वापस आ गए, जहाँ वे मार्सल आर्ट्स की शिक्षा देने लगे।उनका एक विद्यार्थी जो एक फोटोग्राफर था और उन्हें मॉडलिंग करने कहा।उस विद्यार्थी ने उन्हें एक छोटी कंपनी में एक मॉडलिंग असयांमेंट दिया। उन्हें कैमरे के सामने पोज देने के लिए, दो घंटे के 5,000 रुपये मिलते थे, पहले की तनख्वाह 4000 रुपये प्रति महीने की तुलना में यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारण था कि वे क्यों मॉडल बने। मॉडलिंग करने के दो महीने बाद, कुमार को प्रमोद चक्रवर्ती ने अंततः अपनी फ़िल्म दीदार में अभिनय करने का मौका दिया।[4]

करियर

कुमार बॉलीवुड में अभिनय की शुरूआत 1991 की फ़िल्मसौगंध से की, जो सराहा नहीं गया। उनकी पहली प्रमुख हिट 1992 की थ्रिलर फ़िल्म खिलाड़ी थी। 1993 का वर्ष उनके लिए अच्छा नहीं रहा क्योंकि उनकी अधिकतर फ़िल्म फ्लॉप हो गई। फ़िर भी, 1994 का वर्ष कुमार के लिए बेहतरीन वर्ष रहा जिसमें खिलाड़ी के साथ मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी और मोहरा जो साल का सर्वाधिक सफल फिल्मों में से था।[5] बाद में, यश चोपड़ा ने उन्हें रोमांटिक फ़िल्म ये दिल्लगी में लिया जो एक सफल फ़िल्म थी।[5] उन्हें इस फ़िल्म के लिए सराहना मिली, जिसमें वे एक रोमांटिक किरदार में थे जो बहुत ही अलग था उनके एक्शन किरदार से।उन्हें फ़िल्मफेयर और स्टार स्क्रीन उत्सवों में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए पहला नोमिनेशन मिला।ये सारी उपलब्धियां, कुमार को उस साल का सफलतम अभिनेता बना दिया।[6]

1995 में, अपनी सफल फिल्मों के साथ, वे खिलाड़ी श्रेणी के तीसरी फ़िल्म सबसे बड़ा खिलाड़ी में अभिनय किया, जो एक हिट थी।[7] वे खिलाड़ी श्रेणी के सभी फिल्मों में सफल रहे और फ़िर बाद के वर्ष में खिलाड़ी टायटल के साथ फ़िल्म खिलाड़ियों के खिलाड़ी में अभिनय किया जिसमें उनके साथ रेखा और रवीना टंडन थी। यह फ़िल्म उस साल का सर्वाधिक सफल फ़िल्म रही।[8]

1997 में, यश चोपड़ा की हिट फ़िल्म दिल तो पागल है में मेहमान कलाकार की भूमिका निभाई, जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकार के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार में नामांकन हुआ। उसी साल, वे खिलाड़ी श्रेणी के पांचवें फ़िल्म मिस्टर एंड मिसेज़ खिलाड़ी में हास्य भूमिका में नजर आए।खिलाड़ी टायटल के साथ उनकी पिछली फिल्मों की तरह, यह फ़िल्म हिट हुई।[9] और इस तरह इस फ़िल्म की तरह, उनका अगला खिलाड़ी नाम से रिलीज सारी फिल्में आने वाले साल में बॉक्स ऑफिस पर हिट होते चला गया। 1999 में, कुमार को फ़िल्म संघर्ष' और जानवर में उनके किरदार के लिए अच्छी सराहना मिली।जबकि पहली फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल हौ सकी, पर बाद में उन्हें सफलता मिली।[10]

2000 में हास्य फ़िल्म हेरा फेरी में अभिनय किया जो हर लिहाज से सफल रही,[11] और इस फ़िल्म में उन्होंने अपने आपको एक एक्शन और रोमांटिक भूमिकाओं की तरह एक सफल हास्य रोल भी अच्छी तरह निभाया।उन्होंने रोमांटिक फ़िल्म धड़कन में भी काम किया और बाद में उसी साल उसे काफ़ी सफलता मिली।[11] 2001 में, फ़िल्म अजनबी में कुमार ने एक नकारात्मक किरदार निभाया। उनकी फ़िल्म को काफी सराहा गया तथा बेस्ट विलेन के लिए पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला।

हेरा फेरी की सफलता के बाद अक्षय कुमार ने कई हास्य फिल्मों में काम किया, जिनमें शामिल हैं आवारा पागल दीवाना (2002), मुझसे शादी करोगी (2004) और गरम मसाला (2005)। यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर बेहद सफल रही और उनके अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ हास्य कलाकार का दूसरा फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।[12][13]

अपनी एक्शन, हास्य और रोमांटिक भूमिकाओं के अलावा कुमार ने ड्रामाई रोल भी बखूबी निभाये जैसे कि एक रिश्ता (2001), आँखें (2002), बेवफा (2005) और वक्त (2005)।

२००६ में वे हेरा फेरी टायटल से बनी दूसरी फ़िल्म फ़िर हेरा फेरी में अभिनय किया। पिछले फ़िल्म की तरह, यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस में सफल हुई।[14] बाद में उसी वर्ष सलमान ख़ान के साथ रोमांटिक संगीत फ़िल्म जान-ए-मन में अभिनय किया। इस फ़िल्म का बेसब्री से इंतजार था और आलोचकों से अच्छा रिव्यू मिलने के बावजूद यह बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सक

दुनिया के अजब-गजब कानून

 1.फ्रांस में सुअर का नाम नेपोलियन रखना गैरकानूनी है।

स्‍वीडन में अपार्टमेंट में रहने वाला व्‍यक्ति रात 10 बजे के बाद टायलेट में फ्लश नहीं कर सकता है।

ईरान में तो महिलाओ का विश्व कप का मैच देखना भी बैन है।

बर्मा में इंटरनेट का इस्तेमाल करना कानून के खिलाफ है.

इजरायल में रविवार के दिन नाक झाड़ने पर आप पर मामला दर्ज हो सकता है।

टेक्सास में खाली बंदूक दिखाकर किसी को धमकी देना गैरकानूनी है। (Gazabhindi.com)

ओहियो के ऑसफोर्ड में किसी मर्द की तस्वीर के सामने औरतों का कपड़े पहनना गैरकानूनी है.

ऑस्ट्रेलिया में उस जानवर का नाम लेना गैरकानूनी है जब आप उसे खाना चाहते हैं. ऐसे में आप पर कार्रवाई हो सकती है।

ईरान में पालतू जानवरों के साथ सेक्स करना जुर्म है।

यूएस के टेक्‍सास में किसी गाय पर चित्रकारी करने पर सजा हो सकती है।

सऊदी महिलाओं को ड्राइविंग का अधिकार नहीं है। ऐसा करने पर उन्हें सजा देने का भी प्रावधान है।

न्यूयॉर्क प्रांत में डोरी में क्लिप लगाकर कपड़े सुखाने के लिए लाइसेंस लेना जरुरी है। (Gazabhindi.com)

हवाई में जुड़वां भाई एक ही कंपनी में काम नहीं कर सकते हैं।

ओरेगान में 69 नंबर की जर्सी पहन कर सड़क पर घूमे तो आपको जेल की हवा खानी पड़ेगी।

वर्जिनिया में महिलाओं को गुदगुदी करना गैर कानूनी है।

बोस्टन में लोग तीन कुत्तों से ज्यादा नहीं पाल सकते हैं।

लॉस एंजिल्स में एक ही टब में दो बच्चों को स्नान कराना गैरकानूनी है।

यह सुनने में बड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन स्वीडन में दिन में 24 घंटे और 12 महीने कार की हेडलाइट ऑन रखनी होती है। (Gazabhindi.com)

मिनेसोटा में कपड़े धोने वक्त एक ही वॉशिंग लाइन पर पुरुष और महिलाओं के अंत:वस्त्र रखना गैरकानूनी है.

अर्केंसस में एक व्यक्ति अपनी पत्नी की माह में एक बार पिटाई कर सकता है, लेकिन एक ही माह में दो बार पिटाई अपराध है.

डेनमार्क में बच्चे का नाम 7 हजार नामों की सूची में से चुनना होता है।


चीन मे फूल, रुमाल, घडी , आदि तोहफे देना गलत माना जाता है और ऐसे तोहफे देने वाले इंसान से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लिया जाता है।

सउदी अरब : बच्चों के लिए पोकमैन कार्टून प्रिय हो सकता है, लेकिन यहां नहीं। सरकार ने इस पर सख्त प्रतिबंध लगा रखा है। कारण यह कि इससे बच्चों का ध्यान भटकता है और वे सही शिक्षा हासिल नहीं कर पाते।

टेक्सास में होटल की दूसरी मंजिल से किसी भैंस पर गोली चलाना गैरकानूनी है। (Gazabhindi.com)

टेक्‍सास में प्‍लास या तार मोड़ने वाले औजार रखना अपराध माना जाता है।

ओहायो प्रांत की लोगान काउंटी में किसी सोती हुई महिला को किस करना गैरकानूनी है।

जार्जिया में अगर कोई स्कूली लड़की किसी लड़के के साथ टहल रही है तो यह जरूरी है कि लड़की की किताबें लड़का थामे। ऐसा नहीं हुआ तो दोनों पर जुर्माना हो सकता है।

थाईलैंड में वहां के नोट पर पैर रखना एक अपराध माना जाता है क्योंकि वहां की मुद्रा पर सर्वाधिक सम्मानित थाई नरेश का चित्र बना होता है।

यदि आप वक्त के पाबंद हैं, तो वेनेजुएला में यह आदत छोड़ दें। यहां पर बुलाए गए समय से 10 से 15 मिनट बाद में पहुंचना ही उचित समझा जाता है।

न्‍यूजर्सी में किसी हत्‍या करते वक्‍त बुलेटप्रूफ जैकेट पहनना मना है। (Gazabhindi.com)

अगर आपको कार साफ करने में आलस्य आता है तो रूस की सड़कें आापके लिए नहीं है। रूस में गंदी कार दौड़ाने के लिए एक बार में 2000 रूबल्स यानी करीब 3400 रुपए का जुर्माना भरना पड़ता है।

फ्लोरिडा की ली काउंटी में बुधवार को सूर्यास्त के बाद मूंगफली को बेचना गैरकानूनी है।

कैलीफोर्निया में बाथ टब में लेटे लेटे संतरा खाने पर प्रतिबंध है।

रोड आइलैंड पर रविवार के दिन एक ही ग्राहक को टूथ पेस्ट और टूथ ब्रश बेचना गैरकानूनी है.

बायोमिंग में जून महीने में खरगोश की फोटो लेना मना है।

वनेवाडा के यूरेका में मूंछों वाले मर्दों का महिलाओं को किस करना गैरकानूनी है. ऐसा पाए जाने पर कड़ी सजा दी जाती है. (Gazabhindi.com)

Oklahoma में कुत्ते को चिढ़ाने पर जेल हो सकती है।

केटुंकी में किसी भी व्‍यक्ति के लिए साल में एक बार नहाना जरूरी है।

मैसायूट्स ऐसी जगह से जहां रात में बगैर नहाए बिस्तर पर जाना गैरकानूनी है. लेकिन उससे अलग खास बात ये है कि वहां रविवार के दिन नहाना भी गैरकानूनी है.

वेरमोंत एक ऐसा देश है जहाँ महिला को नकली दाँत लगवाने से पहले अपने पति की इजाजत लेनी पड़ती है।


अल्बर्टा के एक शहर में कोई किसी पर चिल्लाना तो दूर गाली देना भी बैन है।

सैमोओ में खुद के जन्मदिन का तारीख भूलना जुर्म है.हमारे यहां तो पार्टी से बचने के लिए जान बूझकर भूल जाते है।

ऑस्ट्रेलिया के विटोरिया शहर में आप अपने घर का बल्ब खुद नहीं बदल सकते है इसके लिए आपको किसी लाइसेंस शुदा इल

Friday, January 29, 2016

शाहरुख़ ख़ान

              शााहरूख़ खान


जन्म 2 नवम्बर 1965 (आयु 50 वर्ष)
नई दिल्ली, भारत
रहवास मुंबई, महाराष्ट्र, भारत[1]
व्यवसाय अभिनेता, निर्माता, टेलिविज़न मेज़बान
सक्रिय वर्ष 1988—अबतक
जीवनसंगी गौरी खान (1991—अबतक)
संतान 3
शाहरुख़ ख़ान (उच्चारण [‘ʃaːɦrəx ˈxaːn]; जन्म 2 नवम्बर 1965), जिन्हें अक्सर शाहरुख खान के रूप में श्रेय दिया जाता है और अनौपचारिक रूप में एसआरके नाम से सन्दर्भित किया जाता, एक भारतीय फ़िल्म अभिनेता है। अक्सर मीडिया में इन्हें "बॉलीवुड का बादशाह", "किंग खान", "रोमांस किंग" और किंग ऑफ़ बॉलीवुड नामों से पुकारा जाता है। खान ने रोमैंटिक नाटकों से लेकर ऐक्शन थ्रिलर जैसी शैलियों में 75 हिन्दी फ़िल्मों में अभिनय किया है।[2][3][4][5] फिल्म उद्योग में उनके योगदान के लिये उन्होंने तीस नामांकनों में से चौदह फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीते हैं। वे और दिलीप कुमार ही ऐसे दो अभिनेता हैं जिन्होंने साथ फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार आठ बार जीता है। 2005 में भारत सरकार ने उन्हें भारतीय सिनेमा के प्रति उनके योगदान के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया।

अर्थशास्त्र में उपाधी ग्रहण करने के बाद इन्होने अपने करियर की शुरुआत १९८० में रंगमंचों व कई टेलिविज़न धारावाहिकों से की और १९९२ में व्यापारिक दृष्टी से सफल फ़िल्म दीवाना से फ़िल्म क्षेत्र में कदम रखा। इस फ़िल्म के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर प्रथम अभिनय पुरस्कार प्रदान किया गया। इसके पश्च्यात उन्होंने कई फ़िल्मों में नकारात्मक भूमिकाएं अदा की जिनमे डर (१९९३), बाज़ीगर (१९९३) और अंजाम (१९९४) शामिल है। वे कई प्रकार की भूमिकाओं में दिखे व भिन्न-भिन्न प्रकार की फ़िल्मों में कार्य किया जिनमे रोमांस फ़िल्में, हास्य फ़िल्में, खेल फ़िल्में व ऐतिहासिक ड्रामा शामिल है।

उनके द्वारा अभिनीत ग्यारह फ़िल्मों ने विश्वभर में  १ बिलियन का व्यवसाय किया है। खान की कुछ फ़िल्में जैसे दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे (१९९५), कुछ कुछ होता है (१९९८), देवदास (२००२), चक दे! इंडिया (२००७), ओम शांति ओम (२००७), रब ने बना दी जोड़ी (२००८) और रा.वन (२०११) अबतक की सबसे बड़ी हीट फ़िल्मों में रही है और कभी खुशी कभी ग़म (२००१), कल हो ना हो (२००३), वीर ज़ारा (२००६)।

वेल्थ रिसर्च फर्म वैल्थ एक्स के मुताबिक किंग खान पहले सबसे आमिर भारतीय अभिनेता बन गए हैं। फर्म ने अभिनेता की कुल संपत्ति 3660 करोड़ रूपए आंकी है।


प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा for Reeten soni संपादित करें
ख़ान के माता पिता पठान मूल के थे|[7][8][9] उनके पिता ताज मोहम्मद ख़ान एक स्वतंत्रता सेनानी थे और उनकी माँ लतीफ़ा फ़ातिमा मेजर जनरल शाहनवाज़ ख़ान की पुत्री थी|[10]

ख़ान के पिता हिंदुस्तान के विभाजन से पहले पेशावर के किस्सा कहानी बाज़ार से दिल्ली आए थे,[11] हालांकि उनकी माँ रावलपिंडी से आयीं थी|[12] ख़ान की एक बहन भी हैं जिनका नाम है शहनाज़ और जिन्हें प्यार से लालारुख बुलाते हैं|[13][14] ख़ान ने अपनी स्कूली पढ़ाई दिल्ली के सेंट कोलम्बा स्कूल से की जहाँ वह क्रीड़ा क्षेत्र, शैक्षिक जीवन और नाट्य कला में निपुण थे| स्कूल की तरफ़ से उन्हें "स्वोर्ड ऑफ़ ऑनर" से नवाज़ा गया जो प्रत्येक वर्ष सबसे काबिल और होनहार विद्यार्थी एवं खिलाड़ी को दिया जाता था| इसके उपरांत उन्होंने हंसराज कॉलेज से अर्थशास्त्र की डिग्री एवं जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से मास कम्युनिकेशन की मास्टर्स डिग्री हासिल की|[15]


अपने माता पिता के देहांत के उपरांत ख़ान १९९१ में दिल्ली से मुम्बई आ गए| १९९१ में उनका विवाह गौरी ख़ान के साथ हिंदू रीति रिवाज़ों से हुआ|[16] उनकी तीन संतान हैं - एक पुत्र आर्यन (जन्म १९९७) और एक पुत्री सुहाना (जन्म २०००)|व पुत्र अब्राहम।

अभिनय संपादित करें
ख़ान ने अभिनय की शिक्षा प्रसिद्द रंगमंच निर्देशक बैरी जॉन से दिल्ली के थियेटर एक्शन ग्रुप में ली| वर्ष २००७ में जॉन ने अपने पुराने शिष्य के बारे में कहा,

" The credit for the phenomenally successful development and management of Shah Rukh's career goes to the superstar himself."(अनुवाद - शाह रूख़ के कैरियर की असाधारण सफलता का सारा श्रेय उस ही को जाता है|)[17]

ख़ान ने अपना कैरियर १९८८ में दूरदर्शन के धारावाहिक "फ़ौजी" से प्रारम्भ किया जिसमे उन्होंने कोमान्डो अभिमन्यु राय का किरदार अदा किया|[18] उसके उपरांत उन्होंने और कई धारावाहिकों में अभिनय किया जिनमे प्रमुख था १९८९ का "सर्कस"[19], जिसमे सर्कस में काम करने वाले व्यक्तियों के जीवन का वर्णन किया गया था और जो अज़ीज़ मिर्ज़ा द्वारा निर्देशित था| उस ही वर्ष उन्होंने अरुंधति राय द्वारा लिखित अंग्रेज़ी फ़िल्म "इन विच एनी गिव्स इट दोज़ वंस" में एक छोटा किरदार निभाया| यह फ़िल्म दिल्ली विश्वविद्यालय में विद्यार्थी जीवन पर आधारित थी|



अपने माता पिता की मृत्यु के उपरांत १९९१ में ख़ान नई दिल्ली से मुम्बई आ गये| बॉलीवुड में उनका प्रथम अभिनय "दीवाना" फ़िल्म में हुआ जो बॉक्स ऑफिस पर सफल घोषित हुई|[20] इस फ़िल्म के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर की तरफ़ से सर्वश्रेष्ठ प्रथम अभिनय का अवार्ड मिला| उनकी अगली फ़िल्म थी "माया मेमसाब" जो नही चली| १९९३ की हिट फ़िल्म "बाज़ीगर" में एक हत्यारे का किरदार निभाने के लिए उन्हें अपना पहला फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार मिला| उस ही वर्ष में फ़िल्म "डर" में इश्क़ के जूनून में पागल आशिक़ का किरदार अदा करने के लिए उन्हें सरहाया गया| इस वर्ष में फ़िल्म "कभी हाँ कभी ना" के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर समीक्षक सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरूस्कार से भी सम्मानित किया गया| १९९४ में ख़ान ने फ़िल्म "अंजाम" में एक बार फिर जुनूनी एवं मनोरोगी आशिक़ की भूमिका निभाई और इसके लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक का पुरूस्कार भी प्राप्त हुआ|

१९९५ में उन्होंने आदित्य चोपड़ा की पहली फ़िल्म "दिल वाले दुल्हनिया ले जायेंगे" में मुख्य भूमिका निभाई| यह फ़िल्म बॉलीवुड के इतिहास की सबसे सफल और बड़ी फिल्मों में से एक मानी जाती है| मुम्बई के कुछ सिनेमा घरों में यह १२ सालों से चल रही है|[21][22] इस फ़िल्म के लिए उन्हें एक बार फिर फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार हासिल हुआ|

१९९६ उनके लिए एक निराशाजनक साल रहा क्यूंकि उसमे उनकी सारी फिल्में असफल रहीं|[23] १९९७ में उन्होंने यश चोपड़ा की दिल तो पागल है, सुभाष घई की परदेश और अज़ीज़ मिर्ज़ा की येस बॉस जैसी फिल्मों के साथ सफलता के क्षेत्र में फिर कदम रखा|[24]

वर्ष १९९८ में करण जोहर की बतौर निर्देशक पहली फ़िल्म कुछ कुछ होता है उस साल की सबसे बड़ी हिट घोषित हुई और ख़ान को चौथी बार फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार हासिल हुआ। इसी साल उन्हें मणि रत्नम की फ़िल्म दिल से में अपने अभिनय के लिए फ़िल्म समीक्षकों से काफ़ी तारीफ़ मिली और यह फ़िल्म भारत के बाहर काफ़ी सफल रही।[25]

अगला वर्ष उनके लिए कुछ ख़ास लाभकारी नही रहा क्यूंकि उनकी एक मात्र फ़िल्म, बादशाह, का प्रदर्शन स्मरणीय नही रहा और वह औसत व्यापार ही कर पायी|[26] सन २००० में आदित्य चोपड़ा की मोहब्बतें में उनके किरदार को समीक्षकों से बहुत प्रशंसा मिली और इस फ़िल्म के लिए उन्हें अपना दू


वर्ष फ़िल्म चरित्र टिप्पणी
1992 दीवाना राजा सहाई
चमत्कार सुंदर श्रीवास्तव
राजू बन गया जेंटलमैन राजू (राज माथुर)
दिल आशना है करण
1993 माया मेमसाब ललित
किंग अन्कल अनिल
बाज़ीगर अजय शर्मा/विकी मल्होत्रा
डर राहुल मेहरा
1994 कभी हाँ कभी ना सुनील
अंजाम विजय अग्निहोत्री
1995 दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे राज मलहोत्रा
ओह डार्लिंग ! ये है इंडिया हीरो
रामजाने रामजाने
त्रिमूर्ति रोमी सिंह
करण अर्जुन अर्जुन
ज़माना दीवाना राहुल मल्होत्रा
गुड्डू गुड्डू बहादुर
1997 दिल तो पागल है राहुल
परदेश अर्जुन सागर
1998 कुछ कुछ होता है राहुल खन्ना
दिल से अमरकांत वर्मा
2000 मोहब्बतें राज आर्यन
2001 अशोका अशोक
कभी खुशी कभी ग़म राहुल रायचंद
2002 देवदास देवदास मुखर्जी
2003 कल हो ना हो अमन माथुर
चलते चलते राज माथुर
2004 स्वदेश मोहन भार्गव
वीर जारा वीर प्रताप सिह
मैं हूँ ना राम शर्मा
2005 पहेली किशनलाल
2006 कभी अलविदा ना कहना देव सरन
डॉन विजय, डॉन
2007 चक दे इन्डिया कबीर खान
ओम शान्ति ओम ओम प्रकाश माखीजा, ओम कपूर
2008 रब ने बना दी जोडी सुरिन्दर साहनी, राज
2009 बिल्लू सुपरस्टार साहिर खान
लक बाय चांस
2010 दूल्हा मिल गया पवन राज गाँधी
माई नेम इज़ ख़ान रिज़वान ख़ान
2011 रा.वन जी.वन
डॉन २ डॉन
2012 जब तक है जान समर आनंद
2013 चेन्नई एक्सप्रेस (२०१३ फ़िल्म) राहुल
2014 हैप्पी न्यू ईयर चार्ली
2015 दिलवाले काली }
नामांकन और पुरस्कारसंपादित करें
2011 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - माई नेम इज़ ख़ान
2007 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - चक दे! इंडिया
2005 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - स्वदेश
2003 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - देवदास
1999 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - कुछ कुछ होता है
1998 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - दिल तो पागल है
1996 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे
1994 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - बाज़ीगर




Thursday, January 28, 2016

भानगढ़ किले का रहस्य

राजस्थान के भानगढ़ Bhangarh का उजड़ा किला व नगर भूतों का डरावना किले के नाम से देश विदेश में चर्चित है| इस किले की यात्रा के लिए अलवर व जयपुर से सड़क मार्ग द्वारा जाया जा सकता है रेल मार्ग से भी दौसा रेल्वे स्टेशन से उतर कर सड़क मार्ग से इस जगह पहुंचा जा सकता है दौसा से भानगढ़ की दुरी २२ किलोमीटर है| जबकि जयपुर व अलवर दोनों जगहों से लगभग ८० किलोमीटर है|

भानगढ़ के किले व नगर की उजड़ने की कई कहानियां प्रचलित है जिनमें रानी रत्नावती व एक तांत्रिक की कहानी प्रमुख है, प्रचलित जनश्रुतियों में किसी में रत्नावती को भानगढ़ की रानी बताया गया है तो किसी कहानी में भानगढ़ की सुन्दर राजकुमारी| पर दोनों ही कथाओं में इस पात्र के साथ सिंधु सेवड़ा नामक तांत्रिक का नाम व उसका कुकृत्य जरुर जुड़ा है|


प्रचलित कहानी के अनुसार सिंधु देवड़ा महल के पास स्थित पहाड़ पर तांत्रिक क्रियाएँ करता था वह रानी रत्नावती के रूप पर आसक्त था| एक दिन भानगढ़ के बाजार में उसने देखा कि रानी कि एक दासी रानी के लिए केश तेल लेने आई है सिंधु सेवड़ा ने उस तेल को अभिमंत्रित कर दिया कि वह तेल जिस किसी पर लगेगा उसे वह तेल उसके पास ले आएगा| कहते है रानी ने जब तेल को देखा तो वह समझ गई कि यह तेल सिंधु सेवड़ा द्वारा अभिमंत्रित है कहते है रानी भी बहुत सिद्ध थी इसलिए उसने पहचान करली और दासी से उस तेल को तुरंत फैंकने को कहा| दासी ने उस तेल को एक चट्टान पर गिरा दिया| कहते है अभिमंत्रित तेल ने चट्टान को उडाकर सिंधु सेवड़ा की और रवाना कर दिया सिंधु सेवड़ा ने चट्टान देखकर अनुमान लगाया कि रानी उस पर बैठकर उसके पास आ रही सो उसने अभिमंत्रित तेल को रानी को सीधे अपनी छाती पर उतारने का आदेश दिया|

जब चट्टान पास आई तब तांत्रिक को असलियत पता चली तो उसने आनन् फानन में चट्टान उसके ऊपर गिरने से पहले भानगढ़ नगर उजड़ने का शाप दे दिया और खुद चट्टान के नीचे दबकर मर गया| कहते है सिद्ध रानी को यह सब समझते देर ना लगी और उसने तुरंत नगर खाली कराने का आदेश दे दिया| इस तरह यह नगर खाली होकर उजड़ गया और रानी भी तांत्रिक के शाप की भेंट चढ गई|

कितनी सच्चाई है इस कहानी में –

इस कहानी में कितनी सच्चाई है इसके बारे में इस बात से ही जाना जा सकता है कि जनश्रुतियों में भानगढ़ के लिए प्रचलित कहानी में कई लोग रत्नावती को राजकुमारी तो कई लोग रानी बतातें है| रानी रत्नावती का जिक्र तो हर कोई करता है पर वह किस राजा की रानी थी ? 
उसके राजा व उसका शासन काल कौनसा था? 
नगर किस काल में उजड़ा ? 
इस प्रश्नों पर सब चुप है| अक्सर लोग इस नगर व किले को ५०० वर्ष पहले उजड़ा बताते है पर किले से मिले विभिन्न राजाओं के शिलालेखों की तारीख देखने के बाद उसके उजड़ने की समय सीमा काफी कम हो जाती है| हमने अपनी यात्रा में एक मंदिर (शायद मंगला देवी या केशवराय) के गर्भगृह के द्वार पर लगी एक बड़ी शिला पर संवत १९०२ लिखा देखा इस हिसाब से उस मंदिर के निर्माण का काल संवत १९०२ है तो जाहिर है आज से १६७ वर्ष पुर्व यह नगर आबाद था| 



भानगढ़ का इतिहास 


अपने पास उपलब्ध इतिहास की पुस्तकों में मुझे भानगढ़ के बारे में ज्यादा जानकारी तो नहीं मिली पर कुंवर देवीसिंह मंडावा ने अपनी पुस्तक “राजस्थान के कछवाह” में भानगढ़ के इतिहास की संक्षिप्त जानकारी जरुर दी| अब तक मुझे मिली भानगढ़ के किले की ऐतिहासिक जानकारी के आधार पर भानगढ़ का किला जो आमेर के राजा भगवंतदास ने बनाया था उनके छोटे बेटे माधवसिंह (माधोसिंह) को मिला| भगवंतदास का स्वर्गवास मंगसर सुदी ७ वि.स. १६४६, १५ दिसम्बर १५९० को लाहौर में हुआ था| इसलिए यह अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है कि इस समय के आस-पास इस किले की राजगद्दी पर माधवसिंह बैठे थे| इनके अधीन मालपुरा भी था व मुंहता नैणसी के अनुसार अजमेर भी था |माधवसिंह (माधोसिंह) अपने बड़े भाई आमेर के राजा मानसिंह की भांति ही बहुत वीर पुरुष थे उन्होंने शाही सेना में रहते हुए कई महत्वपूर्ण युद्धों में वीरता दिखाकर अपनी वीरता का लोहा मनवाया था| आमेर में इनकी वीरता के बहुत किस्से प्रचलित थे| एक बार वे आमेर आये थे कि आमेर किले के एक झरोखे से अचानक गिरने की वजह से उनकी मृत्यु हो गई| जहाँ उनकी मृत्यु हुई वहां उनका एक स्मारक भी बना है| राजस्थान के इतिहासकार ओझा जी को भानगढ़ में माधवसिंह के दो शिलालेख मिले थे जिन पर माघ बदी एकम वि.स. १६५४ और दूसरे में १६५५ लिखा था| 

माधवसिंह (माधोसिंह) के बाद उनका पुत्र छत्रसाल जिसे छत्रसिंह के नाम से भी जाना जाता है भानगढ़ की गद्दी पर बैठा| छत्रसिंह अपने दो पुत्रों भीमसिंह व आनंद सिंह के साथ दक्षिण में शाही सेना से बगावत करने वाले खानजहाँ लोदी से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे| छत्रसिंह का एक पुत्र अजबसिंह भी था जिसने भानगढ़ के पास ही अजबगढ़ नाम से एक नगर बसाया और वहां किला बनवाया| अजबसिंह ने बलख युद्ध में अप्रत्याशित वीरता दिखाई थी| छत्रसिंह का भानगढ़ में मिले एक शिलालेख में आषाढ़ बदी १३ वि.स.१६७६ अंकित मिला है| छत्रसिंह का एक पुत्र उग्रसेन भी था पर गद्दी पर कौन बैठा उसका पता मेरे पास उपलब्ध पुस्तकों में नहीं मिला| पर भानगढ़ में मिले एक अन्य शिलालेख में माघ बदी एकम वि.स.१७२२ में इसी वंश का एक वंशज हरिसिंह गद्दी पर बैठा|

हरिसिंह के दो बेटे या उसके वंश के दो बेटे औरंगजेब के काल में मुसलमान बन गए थे जिनका नाम मोहम्मद कुलीज व मोहम्मद दहलीज था जिन्हें भानगढ़ राज्य मिला था इन दोनों भाइयों का एक शिलालेख भानगढ़ में मिला है जिस पर जेठ सुदी १४ १७५६ अंकित है| इन दोनों भाइयों के मुसलमान बनने व दिल्ली में मुग़ल सत्ता के कमजोर होने का फायदा उठाते हुए आमेर के महाराजा सवाई जयसिंह ने इन दोनों भाइयों को मारकर भानगढ़ पर कब्ज़ा कर लिया था और इस राज्य को अपने अधीन कर माधवसिंह(माधोसिंह) के ही वंशजों को अपने अधीन जागीरदार बना दिया|

कुछ अनुतरित प्रश्न 

महाराजा सवाई जयसिंह जी द्वारा अपने अधीन करने के बाद इस किले का कौन कौन जागीरदार रहा? 
किले का प्रबंध व नियंत्रण किस जागीरदार के हाथों में रहा ? 
रानी रत्नावती जिसके बारे में कहा जाता है कि वह पास के ही एक गांव तीतरवाडा की रहने वाली थी किस जागीरदार की रानी थी ?
नगर कब और क्यों उजड़ा ? 
ऐसी कौनसी परिस्थितयां रही होगी कि जयपुर आमेर के शक्तिशाली शासकों के अधीन रहते हुए यह संपन्न और समृद्ध नगर वीरान हो उजड़ गया ?
पुरा शहर और महल उजड़ गया सभी निर्माण जमींदोज हुए पर वहां बने मंदिर सुरक्षित कैसे रहे ? 
ऐसे कई प्रश्न है जिनके निवारण के लिए शोध की आवश्यकता है| एक समय समृद्ध रहे भानगढ़ नगर के इतिहास को आपके लोगों के सामने रख सकूँ इसकी मैं पुरी कोशिश करूँगा| 

सिंधु सेवड़ा द्वारा नगर का नाश व भूतों का सच 


उजड़ा बाज़ार
इस किले व नगर के उजड़ने के संबंध प्रचलित कहानियों व जन-श्रुतियों की ऊपर चर्चा की जा चुकी है पर किले व नगर को देखने के बाद आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि किले व नगर का नाश किसी चट्टान द्वारा नहीं किया गया है बल्कि नगर उजड़ जाने व खाली हो जाने के कई वर्षों बाद तक आस-पास के ग्रामीणों व अन्य लोगों द्वारा खाली पड़ी इमारतों से जरुरत का सामान निकालने के चक्कर में इमारतें खंडहर में तब्दील हुई है वही किले व महलों को उनमें गड़े धन को निकालने के लिए चोरों द्वारा खुदाई करने के चलते नुक्सान पहुंचा है साथ ही पर्यटकों द्वारा भी नगर व महल की टूटी दीवारों पर चढ़ने के कारण नुकसान पहुंचा है|


सुरक्षित गोपीनाथ मंदिर
मजे की बात यह है कि नगर में बनी हवेलियाँ व बाजार में बनी दुकानें खंडहर में तब्दील हो गई पर भानगढ़ नगर में बने प्राचीन मंदिर वैसे के वैसे सुरक्षित है हाँ उनकी मूर्तियां जरुर गायब है| यदि प्राकृतिक विपदा या तांत्रिक द्वारा अपनी शक्ति से नगर का उजड़ना माना जाय तो फिर मंदिर कैसे बच गए ?
बात साफ है एक तो मंदिरों में लगे दरवाजे आदि घरों


         





Monday, January 25, 2016

अशोक बिन्दुसार मौर्य

राजकाल ३०४ ईसा पूर्व से २३२ ईसा पूर्व
राज्याभिषेक २७० ईसा पूर्व
जन्म ३०४ ईसा पूर्व
पाटलिपुत्र, पटना
मृत्यु २३२ ईसा पूर्व
पाटलिपुत्र, पटना
उत्तराधिकारी दशरथ मौर्य
पत्नी देवी (वेदिस-महादेवी शाक्यकुमारी)
कारुवाकी (द्वितीय देवी तीवलमाता)
असंधिमित्रा - अग्रमहिषी,
पद्मावती
तिष्यरक्षिता

वंश मौर्य
पिता बिन्दुसार
माता सुभद्रांगी (उत्तरी परम्परा), रानी धर्मा (दक्षिणी परम्परा)
अशोक महान का पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक मौर्य (राजा प्रियदर्शी देवताओं का प्रिय)। (राजकाल ईसापूर्व 273-232) प्राचीन भारत में मौर्य राजवंश का चक्रवर्ती राजा था। उसके समय मौर्य राज्य उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बंगाल से पश्चिम में अफ़गानिस्तान तक पहुँच गया था। यह उस समय तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य था। सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य से बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जाना जाता है।

जीवन के उत्तरार्ध में अशोक तथागत बुद्ध(सिद्धार्थ गौतम) की मानवतावादी शिक्षाओं से प्रभावित होकर बौद्ध हो गये और उन्ही की स्मृति मे उन्होने एक स्तम्भ खड़ा कर दिया जो आज भी नेपाल में उनके जन्मस्थल - लुम्बिनी - मे मायादेवी मन्दिर के पास अशोक स्तम्भ के रुप मे देखा जा सकता है। उसने बौद्ध धर्म का प्रचार भारत के अलावा श्रील में विदेश से कई छात्र शिक्षा पाने भारत आया करते थे


आरंभिक जीवन
अशोक मौर्य सम्राट बिन्दुसार तथा रानी धर्मा का
पुत्र था। लंका की परम्परा में बिंदुसार की सोलह
पटरानियों और 101 पुत्रों का उल्लेख है। पुत्रों में केवल
तीन के नामोल्लेख हैं, वे हैं - सुसीम जो सबसे बड़ा था,
अशोक और तिष्य। तिष्य अशोक का सहोदर भाई और
सबसे छोटा था।एक दिन उसको स्वप्न आया उसका बेटा
एक बहुत बड़ा सम्राट बनेगा। उसके बाद उसे राजा
बिन्दुसार ने अपनी रानी बना लिया। चुँकि धर्मा कोई
क्षत्रिय कुल से नहीं थी अतः उसको कोई विशेष स्थान
राजकुल में प्राप्त नहीं था। अशोक के कई (सौतेले) भाई -
बहने थे। बचपन में उनमें कड़ी प्रतिस्पर्धा रहती थी। अशोक
के बारे में कहा जाता है कि वो बचपन से सैन्य
गतिविधियों में प्रवीण था। दो हज़ार वर्षों के पश्चात्,
अशोक का प्रभाव एशिया मुख्यतः भारतीय
उपमहाद्वीप में देखा जा सकता है। अशोक काल में उकेरा
गया प्रतीतात्मक चिह्न, जिसे हम ' अशोक चिह्न ' के
नाम से भी जानते हैं, आज भारत का राष्ट्रीय चिह्न है।
बौद्ध धर्म के इतिहास में गौतम बुद्ध के पश्चात् अशोक
का ही स्थान आता है।
दिव्यदान में अशोक की एक पत्नी का नाम
'तिष्यरक्षिता' मिलता है। उसके लेख में केवल उसकी
पत्नी 'करूणावकि' है। दिव्यादान में अशोक के दो
भाइयों सुसीम तथा विगताशोक का नाम का उल्लेख है।

साम्राज्य-विस्तार
अशोक का ज्येष्ठ भाई सुशीम उस समय तक्षशिला का
प्रांतपाल था। तक्षशिला में भारतीय-यूनानी मूल के
बहुत लोग रहते थे। इससे वह क्षेत्र विद्रोह के लिए उपयुक्त
था। सुशीम के अकुशल प्रशासन के कारण भी उस क्षेत्र में
विद्रोह पनप उठा। राजा बिन्दुसार ने सुशीम के कहने पर
राजकुमार अशोक को विद्रोह के दमन के लिए वहाँ
भेजा। अशोक के आने की खबर सुनकर ही विद्रोहियों ने
उपद्रव खत्म कर दिया और विद्रोह बिना किसी युद्ध के
खत्म हो गया। हालाकि यहाँ पर विद्रोह एक बार फिर
अशोक के शासनकाल में हुआ था, पर इस बार उसे बलपूर्वक
कुचल दिया गया।
अशोक का साम्राज्य
अशोक की इस प्रसिद्धि से उसके भाई सुशीम को
सिंहासन न मिलने का खतरा बढ़ गया। उसने सम्राट
बिंदुसार को कहकर अशोक को निर्वास में डाल दिया।
अशोक कलिंग चला गया। वहाँ उसे मत्स्यकुमारी
कौर्वकी से प्यार हो गया। हाल में मिले साक्ष्यों के
अनुसार बाद में अशोक ने उसे तीसरी या दूसरी रानी
बनाया था।
इसी बीच उज्जैन में विद्रोह हो गया। अशोक को सम्राट
बिन्दुसार ने निर्वासन से बुला विद्रोह को दबाने के
लिए भेज दिया। हालाकि उसके सेनापतियों ने विद्रोह
को दबा दिया पर उसकी पहचान गुप्त ही रखी गई
क्योंकि मौर्यों द्वारा फैलाए गए गुप्तचर जाल से उसके
बारे में पता चलने के बाद उसके भाई सुशीम द्वारा उसे
मरवाए जाने का भय था। वह बौद्ध सन्यासियों के साथ
रहा था। इसी दौरान उसे बौद्ध विधि-विधानों तथा
शिक्षाओं का पता चला था। यहाँ पर एक सुन्दरी,
जिसका नाम देवी था, उससे अशोक को प्रेम हो गया।
स्वस्थ होने के बाद अशोक ने उससे विवाह कर लिया।
कुछ वर्षों के बाद सुशीम से तंग आ चुके लोगों ने अशोक
को राजसिंहासन हथिया लेने के लिए प्रोत्साहित
किया, क्योंकि सम्राट बिन्दुसार वृद्ध तथा रुग्ण हो चले
थे। जब वह आश्रम में थे तब उनको खबर मिली की उनकी
माँ को उनके सौतेले भाईयों ने मार डाला, तब उन्होने
महल मे जाकर अपने सारे सौतेले भाईयों की हत्या कर दी
और सम्राट बने।
सत्ता संभालते ही अशोक ने पूर्व तथा पश्चिम, दोनों
दिशा में अपना साम्राज्य फैलाना शुरु किया। उसने
आधुनिक असम से ईरान की सीमा तक साम्राज्य केवल
आठ वर्षों में विस्तृत कर लिया।
कलिंग
लड़ाईलड़ाई
अशोक ने अपने राज्याभिषेक के ८वें वर्ष (२६१ ई. पू.) में
कलिंग पर आक्रमण किया था। आन्तरिक अशान्ति से
निपटने के बाद २६९ ई. पू. में उसका विधिवत् अभिषेक हुआ
तेरहवें शिलालेख के अनुसार कलिंग युद्ध में एक लाख ५०
हजार व्यक्ति बन्दी बनाकर निर्वासित कर दिए गये, एक
लाख लोगों की हत्या कर दी गयी। सम्राट अशोक ने
भारी नरसंहार को अपनी आँखों से देखा। इससे द्रवित
होकर अशोक ने शान्ति, सामाजिक प्रगति तथा
धार्मिक प्रचार किया।
कलिंग युद्ध ने अशोक के हृदय में महान परिवर्तन कर दिया।
उसका हृदय मानवता के प्रति दया और करुणा से उद्वेलित
हो गया। उसने युद्धक्रियाओं को सदा के लिए बन्द कर
देने की प्रतिज्ञा की। यहाँ से आध्यात्मिक और धम्म
विजय का युग शुरू हुआ। उसने बौद्ध धर्म को अपना धर्म
स्वीकार किया।
सिंहली अनुश्रुतियों दीपवंश एवं महावंश के अनुसार
अशोक को अपने शासन के चौदहवें वर्ष में निगोथ नामक
भिक्षु द्वारा बौद्ध धर्म की दीक्षा दी गई थी।
तत्पश्चात् मोगाली पुत्र निस्स के प्रभाव से वह पूर्णतः
बौद्ध हो गया था। दिव्यादान के अनुसार अशोक को
बौद्ध धर्म में दीक्षित करने का श्रेय उपगुप्त नामक बौद्ध
भिक्षुक को जाता है। अपने शासनकाल के दसवें वर्ष में
सर्वप्रथम बोधगया की यात्रा की थी। तदुपरान्त अपने
राज्याभिषेक के बीसवें वर्ष में लुम्बिनी की यात्रा की
थी तथा लुम्बिनी ग्राम को करमुक्त घोषित कर दिया


बौद्ध धर्म अंगीकरण
तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक द्वारा
बनाया गया मध्य प्रदेश में साँची का स्तूप
कलिंग युद्ध में हुई क्षति तथा नरसंहार से उसका मन लड़ाई
करने से उब गया और वह अपने कृत्य से व्यथित हो गया।
इसी शोक में वो बुद्ध के उपदेशों के करीब आता गया और
उसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया।
बौद्ध धर्म स्वीकीर करने के बाद उसने उसको अपने जीवन
मे उतारने की कोशिश भी की। उसने शिकार तथा पशु-
हत्या करना छोड़ दिया। उसने ब्राह्मणों अन्य
सम्प्रदायों के सन्यासियों को खुलकर दान दिया।
जनकल्याण के लिए उसने चिकित्यालय, पाठशाला तथा
सड़कों आदि का निर्माण करवाया।
उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने धर्म प्रचारक
नेपाल, श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान , सीरिया , मिस्र तथा
यूनान तक भेजे। उसने इस काम के लिए अपने पुत्र ओर पुत्री
को यात्राओं पर भेजा था। अशोक के धर्म प्रचारकों मे
सबसे अधिक सफलता उसके पुत्र महेन्द्र को मिली। महेन्द्र
ने श्रीलंका के राजा तिस्स को बौद्ध धर्म मे दीक्षित
किया, जिसने बौद्ध धर्म को अपना राजधर्म बना
दिया। अशोक से प्रेरित होकर उसने अपनी उपाधि
'देवनामप्रिय' रख लिया।



Sunday, January 24, 2016

क्या है कैलाश पर्वत का रहस्य – तथ्य।


कैलाश पर्वत एक विशाल पर्वत है। यह प्रकृति की एक सुंदर
रचना ही है। माना जाता है यदि कोई पिरामिड
प्रकृति ने खुद बनाया है तो वह कैलाश पर्वत ही है।
प्राचीन सनातन ग्रंथों में भगवान शिव को कैलाश पर्वत
का स्वामी बताया गया है। पुरणों के अनुसार भगवान
शिव और माता पार्वती यहीं पर निवास करते हैं। आज
तथ्यों में हम आपको कैलाश पर्वत के कुध अद्भुत रहस्यों को
बतायेंगे। ध्यान से पढ़िये और जानिए इस पर्वत के बारे में।
कैलाश पर्वत …….दुनिया का सबसे बड़ा
रहस्यमयी पर्वत, अप्राकृतिक शक्तियों का
भण्डारक
एक्सिस मुंडी(कैलाश पर्वत) को ब्रह्मांड का केंद्र,
दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक
ध्रुव के रूप में, यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक
बिंदु है जहाँ चारों दिशाएं मिल जाती हैं। और यह नाम,
असली और महान, दुनिया के सबसे पवित्र और सबसे
रहस्यमय पहाड़ों में से एक कैलाश पर्वत से सम्बंधित हैं।
एक्सिस मुंडी वह स्थान है अलौकिक शक्ति का प्रवाह
होता है और आप उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं
रूसिया के वैज्ञानिक ने वह स्थान कैलाश पर्वत बताया
है।
भूगोल और पौराणिक रूप से कैलाश पर्वत महत्वपूर्ण
भूमिका निभाता हैं। इस पवित्र पर्वत की ऊंचाई 6714
मीटर है। और यह पास की हिमालय सीमा की चोटियों
जैसे माउन्ट एवरेस्ट के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता
पर इसकी भव्यता ऊंचाई में नहीं, लेकिन अपनी विशिष्ट
आकार में निहित है। कैलाश पर्वत की संरचना कम्पास के
चार दिक् बिन्दुओं के सामान है और एकान्त स्थान पर
स्थित है जहाँ कोई भी बड़ा पर्वत नहीं है। कैलाश पर्वत
पर चड़ना निषिद्ध है पर 11 सदी में एक तिब्बती बौद्ध
योगी मिलारेपा ने इस पर चड़ाई की थी।
कैलाश पर्वत चार महान नदियों के स्त्रोतों से घिरा है
सिंध, ब्रह्मपुत्र, सतलज और कर्णाली या घाघरा तथा दो
सरोवर इसके आधार हैं पहला मानसरोवर जो दुनिया की
शुद्ध पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका
आकर सूर्य के सामान है तथा राक्षस झील जो दुनिया
की खारे पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और
जिसका आकार चन्द्र के सामान है। ये दोनों झीलें सौर
और चंद्र बल को प्रदर्शित करते हैं जिसका सम्बन्ध
सकारात्मक और नकारात्मक उर्जा से है। जब दक्षिण चेहरे
से देखते हैं तो एक स्वस्तिक चिन्ह वास्तव में देखा जा
सकता है.
कैलाश पर्वत और उसके आस पास के बातावरण पर अध्यन
कर रहे रसिया के वैज्ञानिक Tsar Nikolai Romanov और
उनकी टीम ने तिब्बत के मंदिरों में धर्मं गुरुओं से मुलाकात
की उन्होंने बताया कैलाश पर्वत के चारों ओर एक
अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है जिसमे तपस्वी
आज भी आध्यात्मिक गुरुओं के साथ telepathic संपर्क
करते है।
” In shape it (Mount Kailas) resembles a vast
cathedral… the sides of the mountain are
perpendicular and fall sheer for hundreds of feet, the
strata horizontal, the layers of stone varying slightly in
colour, and the dividing lines showing up clear and
distinct…… which give to the entire mountain the
appearance of having been built by giant hands, of
huge blocks of reddish stone. ”
देखने में तो कैलाश पर्वत एक विशाल कैथेड्रल जैसा
है…..पर्वत एक दम सीधा सा है इसकी साइड्स भी एक दम
सीधी हैं और हजारों फीट तक की हैं, पर्वत की खाल कई
जगहों पर भिन्न है, पर्वत को अलग करने वाली रेखायें
साफ दिखाई देती हैं………इससे ऐसा प्रतीत होता है कि
इस पूरे पर्वत को किन्हीं बहुत ही विशाल हाथों ने
बनाया होगा।
(G.C. Rawling, The Great Plateau, London, 1905).
रूसिया के वैज्ञानिकों का दावा है की कैलाश पर्वत
प्रकृति द्वारा निर्मित सबसे उच्चतम पिरामिड है।
जिसको कुछ साल पहले चाइना के वैज्ञानिकों द्वारा
सरकारी चाइनीज़ प्रेस में नकार दिया था। वे आगे कहते हैं
” कैलाश पर्वत दुनिया का सबसे बड़ा रहस्यमयी, पवित्र
स्थान है जिसके आस पास अप्राकृतिक शक्तियों का
भण्डार है। इस पवित्र पर्वत सभी धर्मों ने अलग अलग नाम
दिए हैं। ”

महाभारत के ये 10 रहस्य जिसे आप नहीं जानते होंगे.


हिन्दू धर्म में महाभारत को पांचवा वेद माना जाता है।
साथ ही विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य भी है। इसमें दी
गई सारी बातें आज भी उतनी ही मान्य है जितनी उस
काल में थीं। अच्छे जीवन जीने की सारी जानकारी इस
एक ग्रंथ में है।
लेकिन क्या महाभारत जितनी हमारे सामने रखी गई है,
उतनी ही है। युद्ध के बाद महाभारत खत्म हो गई थी? क्या
युद्ध के बाद भी कुछ ऐसी बातें थीं, जो हम नहीं जानते?
आइए, जानते हैं महाभारत के बारे में वो रहस्य, जो शायद ही
आपने कभी सुने हों:
1. 18 का रहस्य
महाभारत में 18 के आंकड़े का विशेष महत्व है। महाभारत का
युद्ध 18 दिनों तक चला था। इसमें 18 अध्याय हैं। भगवान
श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान 18 दिनों तक
चला। गीता में भी 18 ही अध्याय हैं। कौरवों और पांडवों
की कुल सेना 18 अक्षोहिनी थी। युद्ध के भी मात्र 18
योद्धा ही जीवित बचे थे। हालांकि 18 के पीछे राज आज
तक राज ही है।
2. अश्वत्थामा
अश्वत्थामा गुरू द्रोण के पुत्र थे। द्रोणाचार्य के पुत्र को
श्री कृष्ण ने अमरता का श्राप दिया था, क्योंकि उन्होंने
ब्रह्मास्त्र का गलत प्रयोग किया था। इस कारण
श्रीकृष्ण अश्वत्थामा से क्रोधित हो गए और उसे श्राप दे
दिया कि वो उन सभी हत्याओं के पाप का बोझ ढोता
हुआ हजारों वर्ष तक निर्जन जगहों में भटकता रहेगा। उसके
शरीर से हमेशा रक्त की दुर्गंध आएगी। उसकी माथे की
मणी वाले स्थान पर एक घाव होगा तो सदैव रिस्ता
रहेगा। वो अपनी मृत्यु की तलाश में अकेला भटकता रहेगा।
आज भी कई जगहों पर अश्वत्थामा को देखे जाने की बात
कही जाती है। लेकिन इन बातों की सत्यता के बारे में कोई
दावा नहीं कर सकता।
3. विमान और परमाणु शस्त्र
मोहन जोदड़ो की खुदाई में मिले कंकाल में रेडिएशन का
असर मिला था। लोग इसे महाभारत के साथ जोड़ कर देखते
हैं। कहा जाता है कि उस समय में भी परमाणु बम हुआ करते
थे। उस काल के ब्रह्मास्त्र ही परमाणु बम थे। महाभारत में
सौप्तिक पर्व के अध्याय 13 से 15 तक ब्रह्मास्त्र के
परिणाम बताए गए हैं। हिंदू इतिहास के अनुसार 3 नवंबर
5561 ईसा-पूर्व को अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग
किया।
4. कौरवों का जन्म एक रहस्य
धृतराष्ट्र और गांधारी को 100 पुत्रों के पिता और माता
के रूप में जाना जाता है। लेकिन दोनो के शत् पुत्र नहीं,
बल्कि 99 पुत्र और 1 पुत्री थी। इन्हें कौरव कहा जाता
था। कुरू वंश के होने के कारण ही ये कौरव कहलाए।
गांधारी के गर्भ धारण करने के दौरान धृतराष्ट्र ने एक
दासी के साथ संबंध बनाए, जिसके चलते धृतराष्ट्र के 100
पुत्र हुए। वेदव्यास से गांधारी को पुत्री प्राप्ती के लिए
वरदान मिला। हालांकि गांधारी को कोई भी संतान
नहीं हुई। क्रोध में गाधांरी ने अपने पेट पर जोर से मुक्का
मार लिया, जिससे उसका गर्भ गिर गया। इस बात का
मालूम चलने पर वेदव्यास ने गांधारी को फौरन 100 कुएं
खुदवाने को कहा। साथ ही उन्होंमे घी भरवा कर मरे हुए
बच्चे का अवशेष उसमें डाल दिया। यहीं से कौरवों का जन्म
हुआ।
5. महान योद्धा बर्बरीक
बर्बरीक भीम का पौत्र था। उसने यह प्रण लिया था कि
वह हारे हुए पक्ष से लड़ेगा। कौरवों और पांडवो की पूरी
सेना को समाप्त करने लिए बर्बरीक को मात्र तीन बाण
ही पर्याप्त थे। यह जान कर भगवान कृष्ण ने ब्रह्माण का
भेस बना कर उससे दान में उसका शीश मांग लिया। शीश
दान करने के बाद बर्बरीक ने कृष्ण से प्रार्थना की कि वो
अंत तक युद्ध देखना चाहता है। श्री कृष्ण ने उनकी यह
प्रार्थना स्वीकार कर ली। श्री कृष्ण ने उनके शीश को
अमृत से नहलाकर सबसे ऊंची जगह पर रख दिया, जिससे वो
महाभारत का युद्ध देख सके।
6. राशियां नहीं थीं ज्योतिष का आधार
महाभारत काल में ज्योतिष, राशियों के आधार पर कुछ
नहीं बताते थे, क्योंकि उस वक्त राशियां नहीं थीं। ग्रह
और नक्षत्रों द्वारा इस काम को किया जाता था।
ज्योतिष विज्ञान का विस्तार इसके बाद ही हुआ।
7. महाभारत के महायुद्ध में विदेशों से भी लड़ाके हुए थे
शामिल
महाभारत के युद्ध में सिर्फ भारत के ही योद्धा नहीं,
बल्कि विदेशो से भी योद्धा शामिल हुए थे। यवन देश से
सेना ने युद्ध में भाग लिया था। साथ ही ग्रीक, रोमन,
अमेरिका जैसे देशों से भी योद्धाओं के इस संग्राम में
शामिल होने के प्रसंग सामने आते हैं। इसी आधार पर यह
माना जाता है कि महाभारत विश्व प्रथम विश्व युद्ध था।
8. महाभारत किसने लिखी
अधिकतर लोगों का जानना और मानना है कि महाभारत
वेदव्यास ने लिखी है। हालांकि यह अधूरा सच है। असल में
वेदव्यास कोई नाम नहीं, बल्कि एक उपाधि थी, जो वेदों
का ज्ञान रखने वालों को दी जाती थी। महाभारत की
रचना 28वें वेदव्यास कृष्णद्वैपायन ने की थी। इससे पहले 27
वेदव्यास हो चुके थे।
9. अभिमन्यु की मृत्यु किसने मारा?
लोग जानते हैं कि अभिमन्यु की हत्या चक्रव्यूह में सात
महारथियों द्वारा की गई। लेकिन यह भी

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